मेरे व्यक्तिगत विचार यदि इस प्रश्न के सन्दर्भ में यदि स्वीकृत किये जाए तो मैं यही कहूँगा कि, धर्म बदलना जैसा भी कुछ होता है क्या ? और यदि होता है तो धर्म का महत्व ऐसे लोगों के विचारों में शुन्य हो जाता है जो धर्म में कमियां देखते है और इसे बदलना चाहते है | हाँ, यदि वे धर्म से जुडी कुछ रीती-रिवाज जैसी चीजों को बलदने की बात कहते तो मैं ऐसे लोगों का अवश्य समर्थन करता |
आप जिस भी धर्म से सम्बन्ध रखते है, यदि आप ऐसा सोचने लगे है कि आपके धर्म में कुछ खामीयां है और मैं जिस धर्म को स्वीकार करने जा रहा हूँ उस धर्म में कोई भी कमी नहीं है तो आप 100% गलत सोच रहे है |
कमियां धर्म में नहीं होती, सभी धर्म अछे है | बस धर्म के नाम पर चलन में आ रही रीती रिवाज गलत हो सकते है | इनके आधार पर धर्म को गलत कहना उचित नहीं है | जिस धर्म को आप स्वीकार करने जा रहे है क्या उस धर्म में ऐसी रीती रिवाज नहीं है | वहां भी आपको ऐसा ही मिलने वाला है | इसके बाद आप क्या करेंगे | फिर कोई नया धर्म स्वीकार कर लेंगे |
क्या धर्म बदलना उचित है ?
जी, नहीं | धर्म बदलना कभी कोई समाधान नहीं हो सकता | हाँ, कुछ लोग धर्म बलदने को समाधान के रूप में देखते है जैसे : कुछ धर्म ऐसे है जो एक से अधिक शादी को स्वीकार करते है तो कुछ ऐसे भी जो एक मिनट में शादी जैसे अटूट रिश्ते को तोड़ने की स्वतंत्रता देते है | आप ऐसे लोगों के विषय में क्या सोचते है जो मात्र कुछ स्वार्थ की बातें हल करने हेतु धर्म बदल लेते है | मुझे तो ऐसा लगता है कि ऐसा सिर्फ और सिर्फ एक नास्तिक व्यक्ति ही कर सकता है जिसकी नजर में धर्म का कोई महत्व नहीं | ऐसे लोग धर्म का सहारा लेकर अपने कार्य सिद्ध करते देखे गये है |