धर्म और कर्म में कौन बड़ा/सर्वोच्च है ?

By | March 1, 2022

यह post उन सभी जातक के लिए है जो धर्म और कर्म में ठीक से अंतर नहीं कर पाते और धर्म व कर्म की अलग ही व्याख्या स्वयं के मन में बनाये हुए है | क्या धर्म बड़ा है या फिर कर्म आइये जानते है इस post के माध्यम से |

धर्म का मार्ग कर्म पर ही आधारित है | एक जातक जब कुछ कर्म करता है तो उसी विशेष कर्म को धर्म की संज्ञा दे दी जाती है | जैसे हम भगवान की उपासना करते है पूजा करते है पहले तो वह एक कर्म ही हुआ न और फिर बाद में धर्म | इसलिए उत्तर बड़ा ही सामान्य सा है कि सभी धर्म का आधार कर्म है किन्तु सभी कर्म का आधार धर्म कदापि नहीं हो सकता है |

विशेष कर्म जैसे : दान कार्य, देव पूजा , मानसिक पूजा ये सभी कर्म, धर्म का आधार है | किन्तु तामसिक कर्म जैसे : दूसरों को पीड़ा देना, चोरी करना या अन्य बुरे कर्म करना ये धर्म के विपरीत माने गये है |

धर्म और कर्म में कौन बड़ा

धर्म करना है तो अच्छे कर्म करना आवश्यक है :

यदि आप धार्मिक बनना चाहते है तो जरुरी है कि आप अच्छे कर्म करें क्योंकि कोई भी धर्म क्यों न हो आपको बुरे कर्म करने की इजाजत नहीं देता है | अच्छे कर्म करके आप परमपिता परमेश्वर के प्रिय बन सकते है | इसके विपरीत बुरे कर्म आपको उनसे दूर कर देते है | ऐसे में एक जातक धार्मिक कार्य भी करता है और बुरे कर्म भी करता है तो ऐसे में वह कभी धार्मिक नहीं कहा जायेगा और न ही वह कभी परमेश्वर का प्रिय बन सकता है |

परमपिता परमेश्वर का प्रिय बनना है तो अपने कर्म अच्छे रखे | तो फिर भले ही आप धार्मिक कर्म न भी करे तब भी आप परमेश्वर के प्रिय ही रहेंगे | यह संसार कर्म प्रधान है न कि धर्म प्रधान यहाँ कर्म को स्वीकारा जाता है तो ऐसे में अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति ही सच्चे अर्थ में धार्मिक है