आपने अक्सर लोगों को व धर्म गुरुओं को ऐसा कहते हुए सुना होगा कि भगवान सब जगह है, भगवान कण-कण में है | यदि ऐसा है तो मंदिर जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है | आप जहाँ है वही रहकर ही भगवान का स्मरण कर सकते है | क्योंकि भगवान सब जगह है तो आपकी प्रार्थना घर पर और मंदिर में दोनों जगह ही स्वीकृत की जाएगी |
भगवान सब जगह पर है इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है किन्तु मंदिर एक माध्यम अवश्य हो सकता है भगवान तक आपकी भावनाएं पहुँचाने का | जो दिखाई देता है वह सच है और जो दिखाई नहीं देता वह मात्र कल्पना | यानि दिखाई देने वाली वस्तु के विषय में समझना आसान हो जाता है और न दिखाई देने वाली वस्तु के विषय में समझना थोडा कठिन |
यही कारण है कि लोगों का विश्वास और उनकी भावनाएं ईश्वर के लिए मंदिर में जाने के बाद और प्रबल हो जाती है | भगवान की प्रतिमा, उनकी छवि भक्त के अन्तः मन को छू जाती है | उनका भगवान में विश्वास और प्रबल होने लगता है | इसके विपरीत किसी रेस्ट्रोरेन्ट में बैठकर या किसी पार्क में बैठकर भगवान का स्मरण करना, उनसे प्रार्थना करना संभव तो किन्तु आपका विश्वास और आपकी भावनाए सही शब्दों में मंदिर में जाने के उपरांत ही प्रबल होती है |
मंदिर जाने का महत्व – वैज्ञानिक द्रष्टिकोण :
यदि हम वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से मंदिर जाने के महत्व को समझने का प्रयास करते है तो मंदिर जाने का महत्व और भी बढ़ जाता है | मंदिर में हजारों की संख्या में लोग आते है | मंदिर में आने के बाद उनका द्रष्टिकोण सकारात्मक हो जाता है | यहाँ आने के बाद वे सकारात्मक सोचते है उनकी यही सकारात्मक सोच मन्दिर के प्रांगन को सकारात्मक उर्जा से भर देती है |
मंदिर के प्रांगन में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह इतना अधिक हो जाता है कि नकारात्मक शक्ति से ग्रसित कोई भी व्यक्ति जब मंदिर के प्रांगन में आता है तो वह सकारात्मक उर्जा के प्रभाव से छट पटाने लगता है | यदि आप के मन में नकारात्मक विचार आ रहे है तो मंदिर जाने से आपके नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते है | जब आप मंदिर से बाहर निकलते है तो आप सकारात्मक उर्जा से भरे होते है |
अब आप समझ गये होंगे कि मंदिर क्यों जाना चाहिए | एक तो वहाँ आपको सकारात्मक उर्जा मिलेगी और दूसरा भगवान के लिए आपकी आस्था, विश्वास और भावनाएं भी अधिक प्रबल होंगी |