साधना व मंत्र सिद्धि में ध्यान देने योग्य जरुरी बातें |

By | December 16, 2017

साधना की क्या आवश्यकता है ? साधना क्यों करें ? वस्तुतः साधना ‘ ईश्वरत्व ‘ का बोध कराती है | आंतरिक सुप्त शक्तियों को जाग्रत करती है | जिनका सम्बन्ध अंडज (ब्रम्हांड ) से है | साधना करते समय साधक अपने अंदर स्थित जीव (सूक्ष्म तत्व ) को ‘ब्रह्म -रंध्र ‘ में स्थित कर लगभग शरीर से नाता तोड़ लेता है |

यह लिखना उत्तम होगा कि साधक अपने प्राण को तीसरे नेत्र (दोनों नेत्रों के ऊपर मध्य भाग -ललाट ) में स्थित करके ध्यान करता है | और ईश्वरत्व की ओर अग्रसर होता है | साधनाहीन प्राणी का सम्पूर्ण समय क्लेशों , इन्द्रियों की चंचलता में व्यतीत होता है | साधना से एकाग्रता और आत्मिक शांति प्राप्त होती है | और इससे उसकी निकटता भी प्राप्त होती है | जिसकी वह साधना कर रहा होता है |

mantra sadhana or mantra siddhi

साधना में द्रढ़ निश्चय , श्रद्धा और विश्वास का महत्व : –

मात्र परिक्षण के उद्देश्य से साधना में अमूल्य समय नष्ट नहीं करना चाहिए | जिस साधना से सिद्धि प्राप्त करने जा रहे है उस साधना को आरंभ करने से पुर्व द्रढ़ निश्चय कर लें कि मुझे साधना से निश्चित -रूपेण सिद्धि प्राप्त करनी है | ऐसा विश्वास बनाकर साधना आरम्भ करें | साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत बड़ी लगन की आवश्यकता होती है |

साधक को कठिन तप एवम साधना करनी होती है तभी सफलता अर्जित होती है | पूर्ण विश्वास , श्रद्धा एवम प्रदायक सिद्ध होती है | साधक के मन में प्रधान देव या देवी के चरणों से पूर्ण श्रद्धा हो और यह विश्वास हो कि मेरी तपस्या , मेरी साधना से देव या देवी शीघ्र ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करेगी |

द्रढ़ निश्चय अथवा संकल्प से साधक की सुप्त ज्ञानेन्द्रियाँ जाग्रत होकर उस ओर अग्रसर होने लगती है | जिसकी साधना कर रहे हो | ‘ लगन ‘ का तात्पर्य होता है ‘अथक प्रयास ‘ अर्थात् सिद्धि प्राप्ति हेतु किया जाने वाला अथक प्रयास ही ‘लगन ‘ कहलाता है | ‘सिद्धि ‘ वह परम आनंद है जिसके लिए प्राचीन काल से साधु , संत , महात्मा सतत् प्रयत्नशील रहे और आज भी |

एकाग्रता है , साधना की महतवपूर्ण कड़ी :-

साधना की मूल कड़ी एकाग्रता है | एकाग्रता के बिना साधना कर पाना असंभव है अतः साधक को चाहिए कि सर्वप्रथम वह अपने चंचल मन को एकाग्र करें , केन्द्रित करें | यदि बार -बार प्रयास करने पर भी मन स्थिर नहीं हो पा रहा है तो आसन की मुद्रा में बैठकर साधक अपने तीसरे नेत्र ( दोनों आँखों के मध्य -ललाट ) को देखने का प्रयास करें | ऐसा बार -बार करें | अथवा स्थापित मूर्ति या चित्र को देखें | इधर -उधर भागने का प्रयास करते मन को बार -बार उसी स्थान पर ले आयें | धीरे -धीरे निरंतर प्रयास से एकाग्रता आने लगेगी और आप अपनी साधना में सफल होंगें |

साधना और भक्ति का प्रदर्शन न करें : –

साधक को अपनी साधना का प्रदर्शन (दिखावा ) कदापि नहीं करना चाहिए , क्योंकि प्रदर्शन सफलता में बाधक सिद्ध होता है | किसी भी देव या देवी की उपासना , आराधना अथवा साधना सदैव गुप्त रीति से करें | प्रदर्शन से पूण्य फल में कमी आती है | प्रदर्शन आपको मिथ्या (झूठा ) सम्मान दे सकता है | किन्तु वास्तव में आप जिस लक्ष्य की प्राप्ति चाहते है, उससे दूर हो जायेंगे | साधना अथवा भक्ति का प्रदर्शन न करें | साधना सिद्धि हेतु मन में सदैव कल्याण की भावना रखें | मन निश्छल हो , मन में श्रद्धा हो , विनम्र रहकर साधना करें |

साधना के समय ब्रह्मचर्य का पालन  :-

इन्द्रियों का भटकाव साधक की साधना में व्यवधान उत्पन्न करता है | अतः सर्वप्रथम साधक अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करें अर्थात इन्द्रियों के वशीभूत न हो बल्कि इन्द्रियों को अपने वश में कर ले | इन्द्रियों को वश में करने से शक्ति का संचय होता है | जो कि साधना में परम लाभकारी सिद्ध होता है |

जो व्यक्ति संयम का पालन करते हुए शक्ति का संचय करता है उसका आत्मिक, आध्यात्मिक एवम् बौद्धिक विकास होता है | और अपना अभीष्ट प्राप्त करता है | शक्ति के नाश का मार्ग ये इन्द्रियां ही है अतः इन पर सदैव बंधन रखना चाहिए | जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए साधना करता है उसे शीघ्र ही अपने लक्ष्य की प्राप्ति होती है |

साधना व मंत्र सिद्धि में और भी बहुत सी बातें है जो ध्यान में रखनी चाहिए | एक बार में इन्हें जान पाना मुश्किल होगा | अतः समय- समय पर आपको इनके विषय में जानकारी प्राप्त होती रहेगी | साधना व मंत्र सिद्धि में साधक को उपरोक्त नियमों को ध्यान में रखते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए | साधना में सफलता साधक के हाथ में होती है |