शिव चालीसा को ऐसे सिद्ध करे, चमत्कारी परिणाम मिलेंगे

By | July 27, 2024

सनातन धर्म में भगवान शिव को सर्वोच्च शक्ति के रूप में जाना गया है | भगवान शिव ही इस संसार के संहारक है | उन्ही की शक्ति से इस धरा का अस्तित्व है | जो जातक शिव तत्व की उपासना करते है वे संसार के सभी सुखों को भोगते है व मृत्यु के भय से मुक्त होते है | भगवान शिव को भोलेनाथ भी कहा गया है| वे अपने भक्तों के थोड़े से भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उन्हें आर्शीवाद देते है |

भगवान शिव की उपासना करने के बहुत से साधन है जैसे : शिवालय में शिवलिंग पूजा करना , सोमवार को व्रत रखना , शिव तांडव स्त्रोत का गायन करना , शिवालय में कावड़ चढ़ाना , शिव मंत्र के जप करना, मानसिक उपासना करना और शिव चालीसा पाठ द्वारा शिव आराधना करना | किसी भी विधि द्वारा आप भगवान शिव से आशीर्वाद पा सकते है | भगवान शिव की उपासना में मन की शुद्धि व निष्ठा भाव का होना नितान्त आवश्यक है |

मन से की गयी भक्ति भौतिक रूप से की गयी भक्ति से अधिक फलदायी होती है किन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं की भौतिक रूप से की गयी भक्ति का फल प्राप्त नहीं होता | मानसिक और शारीरिक, दोनों प्रकार से की गयी भक्ति आपको शीघ्र ही आपके लक्ष्य की ओर ले जाती है | भगवान शिव के प्रति मन में पूर्ण श्रद्धा भाव रखते हुए शिव चालीसा का पाठ आपके सभी दुखों को हरने वाला है |

शिव चालीसा का पाठ आप घर पर या शिवालय शिवलिंग के सामने बैठकर , दोनों स्थाओं पर कर सकते है | प्रतिदिन कम से कम 3 बार शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए | शिव चालीसा का पाठ मुख से मध्यम स्वर में लयबद्धता के साथ बोलकर करना चाहिए | शिव चालीसा पाठ करते समय किसी प्रकार की जल्दबाजी कदापि न करें | पाठ करते समय ध्यान भगवान शिव में लगाये | शुरू में आप किताब से देखकर शिव चालीसा का पाठ कर सकते है बाद में इसे कंठस्त करने का प्रयास करें | सोमवार के दिन 7 बार शिव चालीसा पाठ करना चाहिए |

शिव चालीसा पाठ के साथ-साथ सोमवार को शिवलिंग रूद्र अभिषेक अभिषेक अवश्य करें |

Shiv chalisa sidh

शिव चालीसा : –

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥

कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

शिव चालीसा को सिद्ध करने की विधि : –

शिव चालीसा को सिद्ध करना बहुत ही सरल है | सबसे पहले आप शिव चालीसा को कंठस्त कर ले | अब किसी सोमवार की सुबह पूर्व दिशा में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शिव की फोटो की स्थापना करें | घी का दीपक प्रज्वल्लित करें , धुप आदि लगाये | एक ताम्बे के लौटे में जल लेकर रखे | जल का छिड़काव सभी दिशाओं में करके अपने आस पास के वातावरण को पवित्र बनाये | शिव जी को तिलक करें | शिव चालीसा को तिलक करें | अक्षत अर्पित करें | पुष्प अर्पित करें |  अब मीठे का भोग लगाये| अब गणेश जी के स्तुति मंत्र द्वारा उनका आव्हान करें :

गणेश जी स्तुति मंत्र : –

ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिःसीदसादनम्
ॐ महागणाधिपतये नमः ॥

गणेश जी के आव्हान के पश्चात् संकल्प ले : – दायें हाथ में थोड़ा जल लेकर बोले : हे परमपिता परमेश्वर मैं( अपना नाम बोले) गोत्र( अपना गोत्र बोले) शिव चालीसा पाठ को सिद्ध करने का कार्य कर रहा हूं इसमें मुझे सफलता प्रदान करें, मेरे द्वारा किये गये कार्य में किसी भी प्रकार की कोई गल्ती हो गयी हो तो मुझे क्षमा करें, ऐसा कहते हुए जल को नीचे जमीन पर छोड़ दे और बोले ॐ श्री विष्णु , ॐ श्री विष्णु , ॐ श्री विष्णु |

अब आप पूरे 108 बार शिव चालीसा का पाठ करें | बीच-बीच में आप कुछ समय के लिए स्थान छोड़ सकते है | शिव चालीसा के 108 पाठ पूर्ण होने पर हाथ में जल लेकर पुनः इस प्रकार बोले : – हे परम पिता परमेश्वर मैंने शिव चालीसा पाठ में सिद्धि प्राप्त करने हेतु यह कार्य किया है इसमें मुझे सफलता प्रदान करें, मेरे द्वारा किये गये समस्त शिव चालीसा के पाठ मैं श्री ब्रह्म को अर्पित करता हूं इसमें मुझे पूर्णता प्रदान करें, ऐसा कहते हुए हाथ के जल को नीचे जमीन पर छोड़ दे और बोले ॐ श्री ब्रह्मा, ॐ श्री ब्रह्मा , ॐ श्री ब्रह्मा |

इस प्रकार से आप शिव चालीसा के पाठ को सिद्ध करके इसका प्रयोग मानव कल्याण हेतु कर सकते है | शिव चालीसा पाठ को सिद्ध करने की यह बहुत ही सरल और सूक्ष्म विधि है आप अपनी सुविधा के अनुसार पूजा विधान को बढ़ा भी सकते है | किसी भी प्रकार की सहयता के लिए आप हमें संपर्क कर सकते है |