स्वस्तिक को हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र चिन्ह माना गया है | जिस प्रकार से ॐ और श्री शब्द का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है, ठीक उसी प्रकार से स्वस्तिक भी बहुत पवित्र और शुभता का प्रतीक है | स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग शुभ और शांति के लिए किया जाता है | सभी धार्मिक कार्यों के समय पूजा या अनुष्ठान के समय इस मंत्र द्वारा वातावरण को पवित्र और शांतिमय बनाया जाता है | इस मंत्र का उच्चारण करते समय चारों दिशाओं में जल के छींटे लगाने चाहिए | इस प्रकार जल द्वारा चारों दिशाओं में छींटे लगाकर स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण करने की क्रिया स्वस्तिवाचन वाचन कहलाती है |
स्वस्तिक मंत्र :-
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
स्वस्तिक मंत्र का अर्थ : –
हे इंद्र देव, जो महान कीर्ति रखने वाले है वह हमारा कल्याण करें | पूरे विश्व में ज्ञान के स्वरुप हे पुषादेव हमारा कल्याण करें | जिसका हथियार अटूट है हे गरुड़ भगवान – हमरा मंगल करो | हे ब्रहस्पति हमारा मंगल करो |( ॐ , श्रीं और स्वस्तिक शब्दों के चमत्कारिक लाभ )
गृह निर्माण के समय, मकान की नीवं रखते समय व खेत में बीज डालते समय स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण किया जाता है | पशुओं को रोग से बचाने के लिए व उनकी सम्रद्धि के लिए भी इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है | किसी भी यात्रा पर जाते समय भी इस मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए | ऐसा करने से यात्रा मंगलमय होती है यात्रा में कोई विघ्न नहीं पड़ता |
व्यापार शुरू करते समय भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए | इससे व्यापार में अधिक आर्थिक लाभ मिलता है व हानि होने की सम्भावना कम होती है | पुत्र जन्म के समय भी स्वस्तिक मंत्र का जप करना अतिशुभ माना गया है | इससे संतान निरोग रहती है व ऊपरी बाधा का कोई प्रभाव नहीं होता | शरीर की हर प्रकार से रक्षा के लिए व घर में शांति व सम्रद्धि के लिए स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण अवश्य किया जाना चाहिए |