जब एक मनुष्य जीवन में संकटों से घिर जाता है कहीं कोंई रास्ता नजर आता | पूजा – पाठ का पूरा प्रतिफल नही मिल पाता | ऐसे में उसे क्या क्या करना चाहिए | कभी – कभी भगवान हमारे पूजा -पाठ से खुश न होकर हमारे विनम्र भाव से अरदास करने मात्र से खुश हो जाते है | क्या है अरदास : किसी से विनम्र भाव से बार -बार किसी कार्य को करने का आग्रह करना ही अरदास कहलाता है | अरदास करने वाला व्यक्ति असहाय है , कमजोर है बिलकुल टूट चूका है ऐसे में वह किसी शक्तिशाली व्यक्ति को अपने कार्य को पूर्ण करने का बार-बार आग्रह करता है |
हम भी जीवन में कभी -कभी समश्याओं से परेशान होकर इस तरह टूट जाते है कि कहीं कोई रास्ता नजर नही आता है | ये समश्यायें बीमारी के रूप में आ सकती है , आर्थिक व्यवस्था के रूप में आ सकती है या फिर मान -सम्मान के रूप में भी आ सकती है | प्रत्येक व्यक्ति ऐसे में भगवान को खुश करने का तरह -तरह से प्रयास करता है |
सिद्ध स्थानों पर जाता है भिन्न – भिन्न तरह की पूजा -पाठ करता है | व्रत रखता है, मंत्र जाप करता है | इतना सब करने के बाद भी सफलता नही मिलती और निराश होकर बैठ जाता है | आज हम आपको अरदास के बारे में बता रहे है |
आप जिस भी ईष्ट देव की पूजा करते है उस देव की पूजा करने के साथ – साथ उनसे अरदास लगाये | आपके द्वारा बार -बार की गयी अरदास आपके ईष्ट देव को आपका कार्य पूर्ण करने पर मजबूर कर देती है |
बजरंग बाण में एक चौपाई का वर्णन है जिसमें हनुमान जी से बड़े ही विनम्र भाव से अरदास की जाती है यह चौपाई इस प्रकार है :
|| अब बिलंब केही कारन स्वामी , कृपा करहु उर अंतरयामी ||
इस चौपाई में हनुमान से विनती कर कहा गया है कि अब बिलम्ब क्यों करते हो स्वामी | अब तो मुज पर कृपा कर मेरा कष्ट दूर कर दो |
आपने अपना ईष्ट देव किसी भी देव को बना रखा है आप विनम्र भाव से इस चौपाई का गुणगान कर उनसे अरदास लगाये | जब भी समय मिलता है अपने ईष्ट देव को याद कर उनसे इसी प्रकार से अरदास लगाते रहे | एक भक्त की अरदास देव को उसका कार्य पूर्ण करने पर मजबूर कर देती है | इस प्रकार विनम्र भाव से की गयी अरदास कभी विफल नहीं जाती है |