एक जातक अपनी जन्म कुंडली में विंशोत्तरी दशा सारणी के माध्यम से यह पता लगा सकता है कि कब और किस समय कौन से गृह की महादशा का प्रभाव उसके जीवन पर होने वाला है | एक जातक की कुंडली में जब कोई गृह सबसे अधिक प्रभावशाली होता है तो वह उस गृह की महादशा/Grah ki Mahadasha कहलाती है | कुंडली में जब कोई गृह अपने प्रबलतम स्तर पर होता है तो वह शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के फल देता है | इसलिए ग्रहों की महादशा के समय जातक के जीवन में कुछ न कुछ अवश्य घटित होता है चाहे वह शुभ हो या अशुभ |
Grah ki Mahadasha
किस गृह की महादशा कितने समय तक रहती है : –
सभी ग्रहों की महादशा का समय अलग-अलग है | आइये जानते है कौन-कौन से गृह जातक के जीवन को कितने समय महादशा के रूप मे फलित करते है | ज्योतिष गणना के अनुसार मानव जीवन काल 120 वर्ष का माना गया है और सम्पूर्ण 120 वर्ष मानव किसी न किसी गृह की महादशा में होता है |
सूर्य की महादशा : 6 वर्ष
चन्द्र की महादशा : 10 वर्ष
मंगल की महादशा : 7 वर्ष
राहू की महादशा : 18 वर्ष
गुरु की महादशा : 16 वर्ष
शनि की महादशा : 19 वर्ष
बुध की महादशा : 17 वर्ष
केतु की महादशा : 7 वर्ष
शुक्र की महादशा : 20 वर्ष
जब जातक के जीवन में किसी भी गृह की महादशा शुरू होती है तो उसके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव होने लगते है | व्यापार में वृद्धि , विवाह के योग , पुत्र प्राप्ति , सरकारी नौकरी , विदेश यात्रा यह सब शुभ गृह की महादशा के दौरान जातक प्राप्त कर सकते है | इसके विपरीत : शनि – राहू -केतु इन पाप ग्रहों की महादशा के समय जातक भयंकर पीड़ा का अनुभव भी कर सकते है जैसे : किसी दुर्घटना का शिकार होना , असाध्य रोग की गिरफ्त में आना, धन की हानि , नौकरी छुटना यहाँ तक की जातक मृत्यु का शिकार भी हो सकते है |
ग्रहों की महादशा/Grah ki Mahadasha में उनके प्रतिफल का आंकलन केवल गृह की प्रकृति के आधार भी ही नहीं किया जाता है अपितु : कुंडली में उस विशेष गृह की स्थिति व अन्तर्दशा और प्रत्यंतर दशा पर भी निर्भर करता है |
Grah ki Mahadasha
ग्रहों की अन्तर्दशा :
एक गृह की महादशा के समय में अन्य सभी गृह भी भ्रमण करते है इसे ही अन्तर्दशा कहा गया है | जिस भी गृह की महादशा शुरू होती है तो सबसे पहले उसी गृह की अन्तर्दशा भी शुरू होती है उसके बाद सभी अन्य ग्रहों की अन्तर्दशा आती है | जैसे : गुरु की महादशा के समय गुरु की अन्तर्दशा सबसे पहले शुरू होती है उसके बाद क्रमशः शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चंद्र, मंगल व राहु की अन्तर्दशा आती है | ग्रहों की महादशा के समय महादशा वाले गृह के साथ -साथ अन्तर्दशा वाले स्वामी गृह के फल का भी अनुभव साथ में होता है |
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इस प्रकार एक जातक की कुंडली में विंशोत्तरी दशा सारणी के माध्यम से ज्योतिष यह पता लगा लेते है कि जातक के जीवन काल में किस समय किस प्रकार की घटना घटित होने वाली है | जीवन में विवाह के योग – पुत्र प्राप्ति के योग – सरकारी नौकरी के योग – धन के योग – व्यापार में वृद्धि के योग व हानि और दुर्घटना के योग इन सभी घटनाओं का आंकलन विंशोत्तरी दशा सारणी में ग्रहों की महादशा/Grah ki Mahadasha और अन्तर्दशा के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है |