इच्छाभेदी रस के फायदे -गुण व उपयोग

By | May 16, 2020

इच्छाभेदी रस के पावरफुल आयुर्वेदिक औषधि है जो मुख्य रूप से कब्ज दूर करने हेतु प्रयोग में लायी जाती है | रोगी की इच्छानुसार पेट को शुद्ध करने वाला यह तेज विरेचन है | यह कफ और वात को दूर करता है तथा आँतों में संचित विकार(मल) को निकालता और शूल को नष्ट करता है | बहुत से विख्यात वैद्य के अनुसार किसी विशेष रोग का उपचार शुरू करने से पहले पेट की अच्छे से सफाई करना आवश्यक होता है | यह कार्य इच्छाभेदी रस/Ichhabhedi Ras Fayde एक सेवन से अच्छी तरह हो जाता है | परन्तु इसमें जमालघोटा है, वह पेट में गर्मी बढ़ाकर कभी-कभी दस्त भी ला देता है | अतः नाजुक स्त्री , पुरुष , बालक व गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन नहीं कराना चाहिए |

इच्छाभेदी रस द्वारा जुलाब लेने की विधि :

जब गोली खाने के बाद दस्त आना आरम्भ हो जाये तो एक दस्त आने के बाद दो से तीन घूँट शीतल जल पी लेना चाहिए | अब आप जैसे-जैसे थोडा-थोडा पानी पीयेंगे आपको दस्त आते जायेंगे | यही इस दवा में विशेषता है | और जब दस्त बंद करना हो तो थोड़ा सा गरम पानी पी लेने से दस्त बंद हो जायेंगे | बाद में दही भात खाना सही माना गया है | जुलाब लेने से पहले दिन घी मिली खिचड़ी खाकर कोष्ठ सिनग्ध कर लेना चाहिए | इसकी गोली को चूर्ण कर चीनी मिलाकर भी दे सकते है |

Ichhabhedi Ras Fayde

Ichhabhedi Ras Fayde

इच्छाभेदी रस के फायदे :

मुख्य रूप से यह औषधि कब्ज दूर करने हेतु व पेट की अच्छे से सफाई करने हेतु प्रयोग में लायी जाती है | इस औषधि का प्रयोग चिकित्सक की देख-रेख में ही किया जाना उचित माना गया है | स्वयं से इस औषधि का प्रयोग हानिकारक परिणाम भी दे सकता है |

यह रसायन रक्त-दोष, उपदंश, कुष्ठ, अजीर्ण, आम-वृद्धि, मलव्रद्धि, क्रमी, मलावरोध, कफ प्रधान जलोदर आदि रोगों के नाश करने के लिए भी उत्तम है | कफ प्रधान जलोधर रोग में जल का शोधन करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है |

कफ वृद्धि के कारण कफवाहिनी स्त्रोतों का अवरोध हो जाता है | और वायु की वृद्धि होकर शरीर में आक्षेप-जन्य बीमारी हो जाती है | जिससे अपतंत्र्क, अपतानक आदि रोग उत्पन्न हो जाते है | ऐसी अवस्था में कोष्ठ शोधन करने तथा कफ के अवरुद्ध स्त्रोतों का शोधन करने के लिए विरेचनीय औषधि की आवश्यकता होती है | इसके लिए इच्छाभेदी रस बहुत उपयोगी है |

पक्वाशय में मल संचय विशेष होने पर आंतें दूषित होने से ही सेंद्रिय विष उप्तन्न होता है | यह विष इतना उग्र होता है कि सम्पूर्ण शरीर में फैलकर रस-रक्तादि धातुओं को विकृत करके कुष्ठ सद्रश रोग उत्पन्न कर देता है | इस रोग में समस्त शरीर पर काले या लाल चकते, खुजली सहित उत्पन्न होते है | जिससे रोगी अधिक बेचैन रहता तथा आंतों में मीठा-मीठा दर्द भी रहता है | ऐसी अवस्था में इच्छाभेदी रस/Ichhabhedi Ras Fayde के उपयोग से विशेष लाभ होता है |