धर्म के अनुसार एक शरीर मृत होने के बाद उसकी आत्मा दूसरा शरीर धारण कर लेती है | जिसे पुनर्जन्म कहा गया है | किन्तु क्या सभी धर्म पुनर्जन्म की इस मान्यता को स्वीकृत करते है ? क्या वे सभी धर्म इसे स्वीकार करते है कि एक व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा किसी दुसरे शरीर को धारण कर लेती है चाहे वह मानव का हो किसी भी अन्य जीव का ? हिन्दू धर्म के अनुसार तो पुर्नजन्म की इस मान्यता को पूर्णतः स्वीकृत किया गया है कुछ अन्य धर्म भी है जो पुनर्जन्म/Punar Janam को स्वीकारते है किन्तु कुछ धर्म ऐसे भी जो पुनर्जन्म को नहीं मानते है | आइये पुनर्जन्म के विषय को समझने का प्रयास करते है |
पुनर्जन्म को ठीक से समझने के लिए पहले आपको इसे किसी धर्म से जोड़कर देखना बंद करना होगा | क्योंकि धर्मं चाहे वह कोई भी हो उसमें पुराने रीती-रिवाज , नियम और परम्पराए जो किसी भी धर्म का मुख्य हिस्सा होती है आपको किसी विषय में खुलकर सोचने का अवसर नहीं देते | आज हम व्यक्तिगत रूप से और मानवीय प्रयासों से पुर्नजन्म को अध्धयन करने का प्रयास करेंगे |
Punar Janam True Incidents :
पुनर्जन्म की सच्ची घटनाएँ :
मानव इतिहास में समय-समय पर ऐसी घटनाए हुई है जो यह प्रमाणित करती है कि पुनर्जन्म होता है | हाँ, एक शरीर के मृत होने के बाद उसकी आत्मा जन्म के साथ किसी अन्य शरीर को धारण करती है | आप इन घटनाओं को अनदेखा नहीं कर सकते क्योंकि स्वयं मानव इसके साक्षी रहे है जिन्होंने इसे अपनी आँखों से देखा है और आज ये घटनाएँ इतिहास का हिस्सा है | आप पुनर्जन्म की इन सच्ची घटनाओं के विषय में इन्टरनेट पर सर्च करके आसानी से पढ़ सकते है |
यदि पुनर्जन्म होता है तो मानव अपने कर्मों के आधार पर आने वाले अगले जन्म को सुखद बना सकते है :
आप धार्मिक नहीं है(यहाँ धार्मिक होने का अर्थ केवल देव पूजा और देव आराधना से लिया गया है) किन्तु आपके कर्म बहुत अच्छे है | आपने अपने जीवन में बहुत पुण्य किये है कभी किसी अन्य प्राणी का अहित नहीं किया तो इसमें कोई दो राय नहीं कि आपका आने वाला जन्म आपके लिए सुखद होगा | इसके विपरीत आप धार्मिक है यानि आप देव पूजा करते है, ईश्वर की आराधना करते है किन्तु आपके कर्म अच्छे नहीं है आप दूसरों का अहित करने में पीछे नहीं रहते तो क्या आपका आने वाला जन्म सुखद होगा, यह तो एक सामान्य व्यक्ति भी अनुमान लगा सकता है |
यहाँ हमने धार्मिक शब्द का अर्थ बहुत ही छोटे शब्दों में लिया है ताकि धर्म और कर्म को अलग-अलग करके धर्म और कर्म के अंतर को समझा जा सके | अन्यथा सच्चे अर्थ में धार्मिक वही है तो धर्म के अधीन रहते हुए अपने कर्म/कर्तव्यों का निर्वहन करता है | क्योंकि धर्म चाहे वह कोई भी हो कभी भी बुरे कर्म करने की प्रेरणा नहीं देते है वे सदैव अच्छे कर्म के लिए ही सभी को प्रेरित करते है |
धर्म आपका पथ प्रदर्शन करते है अच्छे कर्म करने में और अच्छे कर्म आपको कर्तव्यों व दायित्वों का निर्वहन करने में आपका मार्गदर्शन | धर्म में कर्म समाहित है किन्तु कर्म स्वत्रंत है | कर्म के बिना आप धर्म का पालन नहीं कर सकते, किन्तु कर्म का पालन स्वतंत्र रहकर किया जा सकता है | कर्म को धर्म की आवश्यकता नहीं है वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र है | इसलिए पुनर्जन्म का आधार कर्म हो सकता है धर्म नहीं |