स्वर्णमाक्षिक भस्म के लाभ व उपयोग

By | November 23, 2019

सोनामक्खी एक उपधातु है | इसमें बहुत अल्पांश में स्वर्ण होने तथा इसके गुणों में सोने के गुण कुछ अल्पता में होने और इसमें स्वर्ण जैसी कुछ चमक होने से इसको स्वर्ण माक्षिक कहते है | शास्त्रों के अनुसार स्वर्ण माक्षिक/Swarnmakshik Bhasma का उपधातु निश्चित होता है क्योंकि इसमें कुछ स्वर्ण के गुण और सहयोग होते है | परतुं वास्तव में यह लोह धातु या उपधातु है | विश्लेषण करने पर इसमें लौह, गंधक और अल्पांश में ताम्बे का भाग पाया जाता है | इसकों लौह समास निश्चित किया गया है | इस विश्लेषण से भी यह उपधातु निश्चित होता है |

How to make Swarnmakshik Bhasma :

स्वर्णमाक्षिक भस्म बनाने की विधि : –

शुद्ध स्वर्णमाक्षिक आधा सेर , शुद्ध गंधक एक पाव – दोनों एकत्र मिला बिजौरा निम्बू के रस में डालकर एक दिन बराबर मर्दन कर इसकी छोटी छोटी टिकिया बना, सुखा , सराब संपुट में बंद कर कपडमिटटी करके सुखा ले | पीछे गजपुट में रखकर फूंक दे | स्वांग-शीतल होने पर निकाल, ग्वारपाठा में मर्दन कर , टिकिया बना सुखा सराब संपुट में बंद कर लघुपुट में रखकर आँच दे | इस प्रकार प्रायः १० पुट में जामुन के रंग की भस्म हो जाती है | स्वर्णमाक्षिक भस्म/Swarnmakshik Bhasma एक बार में आधा सेर या तीन पाव से ज्यादा नहीं बनावे |

Swarnmakshik Bhasma

स्वर्णमाक्षिक भस्म के गुण और उपयोग : –

कुछ चिकित्सकों का विस्वास है कि स्वर्णमाक्षिक भस्म/Swarnmakshik Bhasma, स्वर्ण भस्म के अभाव में इसलिए दिया जाता है कि इसमें स्वर्ण का कुछ अंश रहता है किन्तु यह सिर्फ भ्रम है वास्तव में स्वर्णमाक्षिक लौह का सौम्य कल्प है | हाँ, लौह में जो कठोरता, उष्णता और तीव्रता आदि गुण रहते है वे इस भस्म में नहीं है | लौह का अति सौम्य कल्प होने से यह कमजोर, सुकुमार एवं नाजुक स्त्री पुरुष तथा बालकों के लिए अत्यंत उपयोगी है |

Benefits of Swarnmakshik Bhasma : 

स्वर्णमाक्षिक भस्म के लाभ : –

विपाक के मधुर , तिक्त, वृष्य , रसायन योगवाही , शक्तिवर्धक , पित्तशामक, शीतवीर्य , स्तम्भक , और रक्त प्रसादक है | पांडू , कामला ,जीर्णज्वर , निद्रानाश , दिमाग की गर्मी , पित्त विकार , नेत्ररोग, वमन , उबकाई , अम्लपित , रक्तपित , प्रमेह , प्रदर, शिरशूल , विष विकार, अर्श , उदर रोग और बाल रोगों में यह विशेष उपयोगी है | विशेषकर , कफ-पितजन्य , रोगों में यह बहुत लाभदायक है |

Swarnmakshik Bhasma – Benefits in Acidity 

अम्लपित में लाभ : –

पेट के अंदर आमाशय बढ़ जाने और पेट के भीतर त्वचा विकृत होने तथा उदार में व्रण हो जाने से अम्लपित रोग होता है | शास्त्र में इन सब की गणना अम्लपित में की गयी है | व्रणजन्य अम्लपित को छोड़कर शेष अम्लपितो में स्वर्णमाक्षिक भस्म बहुत उपयोगी है | अम्लपित की सभी अवस्था में स्वर्णमाक्षिक का मिश्रण लाभप्रद है | यदि केवल स्वर्ण माक्षिक भस्म ही देना हो, तो स्वर्णमाक्षिक भस्म 1 रत्ती , आंवला रस के साथ दे | आवला रस के अभाव में मधु के साथ दे |

माक्षिक में लौह के अंश होने से यह शक्तिवर्धक है | नाक से रक्त आता हो, चक्कर आता हो, कमजोरी ज्यादा मालूम पड़े ऐसे समय में स्वर्णमाक्षिक भस्म/Swarnmakshik Bhasma देने से बहुत शीघ्र फायदा होता है |

पांडू व कामला रोग में :

स्वर्णमाक्षिक भस्म 2 रत्ती , मंडूर भस्म 1 रत्ती दोनों को मिलाकर शहद के साथ अथवा कच्ची मूली का रस निकाल कर उसके साथ देना चाहिए | जीर्ण ज्वर में स्वर्ण माक्षिक भस्म 2 रत्ती , वर्धमान पिप्पली के साथ देने से अच्छा लाभ मिलता है |

अन्य जानकारियाँ : – 

पित्तज प्रमेह में स्वर्णमाक्षिक भस्म/Swarnmakshik Bhasma 1 रत्ती , वंग भस्म आधी रत्ती , गिलोय सत्व 3 रत्ती , मुक्ताशुक्ति पिष्टी 1 रत्ती मिलाकर , द्राक्षावलेह अथवा शरबत बनप्सा के साथ देने से शीघ्र ही फायदा होता है |