हम भगवान कृष्ण को जिस रूप में प्राप्त करने का यत्न करते है वे हमें उसी रूप में स्वीकार करते है
इस भौतिक संसार में मित्रता कुछ वर्षों तक चलती है और फिर टूट जाती है, इसलिए इस विकृत, अस्थायी और अवास्तविक कहते है | यदि हम कृष्ण से मित्रता स्थापित करें, तो वह कभी नहीं टूटेगी | यदि हम कृष्ण को अपना स्वामी बना ले, तो हम कभी धोखा नहीं खायेंगे | यदि हम कृषण को पुत्र के… Read More »