गुरु दीक्षा के प्रकार

By | December 12, 2018

शास्त्र सम्मत गुरु दीक्षा के तीन भेद वर्णित है | 1. ब्रह्म दीक्षा 2. शक्ति दीक्षा और 3. मंत्र दीक्षा | 

ब्रह्म दीक्षा : – 

इसमें गुरु साधक को दिशा निर्देश व सहायता कर उसकी कुंडलिनी को प्रेरित कर जाग्रत करता है |और ब्रह्म नाड़ी के माध्यम से परमशिव में आत्मसात करा देता है | इसी दीक्षा को ब्रह्म दीक्षा या ब्राह्मी दीक्षा कहते है | 

शक्ति दीक्षा : –

सामर्थ्यवान गुरु साधक की भक्ति श्रद्धा व सेवा से प्रसन्न होकर अपनी भावना व संकल्प के द्वारा द्रष्टि या स्पर्श से अपने ही समान कर देता है | इसे शक्ति दीक्षा, वर दीक्षा या कृपा दीक्षा कहते है |

मंत्र दीक्षा : – 

मंत्र के रूप में जो ज्ञान दोक्षा अथवा गुरु मंत्र प्राप्त होता है | उसे मंत्र दीक्षा कहते है | 

गुरु सर्वप्रथम साधक को मंत्र दीक्षा से ही दीक्षित करते है | तत्पश्चात शिष्य अर्थात साधक की ग्राह्न क्षमता, योग्यता श्रद्धा भक्ति आदि का निर्णय के पश्चात् ही ब्रह्म दीक्षा व शक्तिदीक्षा से दीक्षित करते है | अन्यथा नहीं | इसलिए यह प्रायः देखा जाता है कि एक ही गुरु के कई शिष्य होते है परन्तु सभी एक स्तर के न होकर भिन्न स्तर के होते है | कई एक साधक मंत्र दीक्षा तक ही सीमित रह जाते है | वैसे गुरु साधक को सर्वगुण संपन्न समझ कर जो कि एक साधक को होना चाहिए | बिना मंत्र दीक्षा दिए भी प्रसन्न होकर कृपा करके ब्रह्म दीक्षा तथा शक्ति दीक्षा दे सकते है | 

इन उपरोक्त दीक्षाओं के अतिरिक्त चार प्रकार की और दीक्षाओं का शास्त्र में उल्लेख मिलता है जो कि निम्न प्रकार से है : –

कलावती दीक्षा : –

इसमें सिद्ध व् सामर्थ्यवान गुरु शक्तिपात की क्रिया द्वारा अपनी शक्ति को साधक में आत्मसात कर उसे शिव रूप प्रदान करता है | 

वेधमयी दीक्षा : –

इसमें सिद्ध व सामर्थ्यवान गुरु साधक पर कृपा कर अपने शक्तिपात के द्वारा साधक के षट्चक्र का भेदन करता है | 

पंचायतनी दीक्षा : – 

इसमें देवी, विष्णु, शिव सूर्य तथा गणेश इन पाँचों देवताओं में से किसी एक को प्रधान देव मानकर वेदी के मध्य में स्थापित करते है तथा शेष चारों देवताओं को चारों दिशा में स्थापित करते है | फिर साधक के द्वारा पूजा एवं साधना करवा कर दीक्षा दी जाती है | 

क्रम दीक्षा : – 

इसमें गुरु व साधक का तारतम्य बना रहता है | धीरे-धीरे गुरु भक्ति श्रद्धा एवं विश्वास बढ़ता जाता है | तत्पश्चात गुरु के द्वारा मन्त्रों व शास्त्रों तथा साधना पद्धतियों का ज्ञान विकसित होता जाता है |