विद्वता और मानवता ! क्या हम मनुष्य है ? एक प्रेरणात्मक कहानी

By | August 22, 2018

एक समय की बात है जब एक स्थान पर बहुत बड़ा मंदिर हुआ करता था | उसमें रोजाना हजारों यात्री दर्शन करने के लिए आते थे | एक दिन अचानक किसी दुर्घटना वश मंदिर का प्रथान पुजारी मर गया | मंदिर के महंत को दुसरे पुजारी की आवश्यकता हुई और उन्होंने घोषणा करा दी जो कल सवेरे पहले पहर आकर यहाँ पूजा संबधी जांच में ठीक सिद्ध होगा, उसे ही मंदिर का पुजारी नियुक्त किया जायेगा |

मंदिर के महंत द्वारा इस घोषणा का पता लगते ही पूरे प्रान्त से विद्वान् पंडित सवेरे-सवेरे पहुँचने के लिए चल पड़ें | मंदिर पहाड़ी पर था | मंदिर पहुँचने के लिए एक ही रास्ता था | उस रास्ते पर बहुत से कंकड़ और पत्थर थे | विद्वानों की भीड़ मंदिर की ओर चली जा रही थी | किसी प्रकार कंकड़ और पत्थरों से बचते हुए लोग मंदिर तक पहुँच रहे थे |

सब विद्वान् पहुँच गये | महंत ने सबकों आदरपूर्वक बैठाया | सबकों भगवान का प्रसाद वितरित किया गया | सबसे अलग-अलग प्रश्न और मंत्र पूछे गये | अंत में परीक्षा पूरी हो गयी | जब दोपहर हो गयी और सब लोग उठने लगे तो एक नौजवान वहां आया | उसके कपड़ें फटे थे | वह पूरा पसीने से भीगा हुआ था | और दिखने में बहुत गरीब लग रहा था |

महंत ने उस व्यक्ति से पूछा कि तुम इनती देर से क्यों आये हो | वह बोला मैं जानता हूँ | मैं केवल भगवान के दर्शन करके लौट जाऊंगा | महंत उसकी दशा देखकर दयालु हो रहे थे | महंत बोले : तुम जल्दी क्यों नहीं आयें | उसने उत्तर दिया – घर से तो मैं बहुत जल्दी चला था | मंदिर के मार्ग में बहुत कांटे और पत्थर भी थे | बेचारे यात्रियों को उनसे कष्ट होता | उन्हें हटाने में देर हो गयी |

महंत ने पूछा, अच्छा तुम्हे पूजा करना आता है ? उसने कहा : भगवान को स्नान करवाकर चन्दन, फूल चढ़ा देना, दूप-दीप जला देना और भोग सामने रखकर पर्दा गिरा देना और शंख बजाना तो जानता हूं | तब महंत ने पूछा और : मंत्र के विषय में कितनी जानकारी है ? तब वह व्यक्ति उदास होते हुए बोला भगवान से नहाने-खाने को कहने के लिए मंत्र भी होते है यह मैं नहीं जानता |

इस पर अन्य सब विद्वान् हंसने लगे कि यह मूर्ख भी पुजारी बनने आया है | महंत ने एक क्षण सोचा और कहा- पुजारी तो तुम आज से बन गये हो | अब मन्त्र सीख लेना, वह में सिखा दूँगा | मुझसे भगवान ने स्वप्न में कहा था कि मुझे मनुष्य चाहिए |

इस पर दूर खड़े सभी विद्वानों ने कहा कि ” तो क्या हम मनुष्य नहीं है ? ”

वे विद्वान् महंत पर नाराज हो रहे थे | इतने पढ़े-रखे विद्वानों के रहते महंत एक ऐसे आदमी को पुजारी बना दे जो मंत्र भी न जानता हो | महंत ने विद्वानों की ओर कहा – अपने स्वार्थ की बात तो पशु भी जानते है | बहुत से पशु बहुत चतुर भी होते है लेकिन सचमुच मनुष्य तो वही है जो दूसरों को सुख पहुचाने का ध्यान रखता है, जो दूसरों को सुख पहुँचाने के लिए अपने स्वार्थ और सुख को छोड़ सकता है |

विद्वानों के सिर नीचे झुक गये | उन लोगों को बड़ी लज्जा आई | वे धीरे-धीरे उठे और मंदिर में भगवान को और महंत जी को नमस्कार करके उस पर्वत से नीचे उतरने लगे |   दोस्तों : सोचने की बात है कि हममें से कौन मनुष्य है ?