इस भौतिक संसार में मित्रता कुछ वर्षों तक चलती है और फिर टूट जाती है, इसलिए इस विकृत, अस्थायी और अवास्तविक कहते है | यदि हम कृष्ण से मित्रता स्थापित करें, तो वह कभी नहीं टूटेगी | यदि हम कृष्ण को अपना स्वामी बना ले, तो हम कभी धोखा नहीं खायेंगे | यदि हम कृषण को पुत्र के रूप में प्यार करें, तो वे कभी नहीं मरेंगे | यदि हम कृष्ण से अपने प्रियतम के रूप में प्रेम करें, तो वे सर्वोत्तम होंगे और उनसे हमारा वियोग नहीं होगा | परम भगवान होने के कारण कृष्ण अनंत है और उनके भक्त भी अनंत है |
कुछ लोग उन्हें प्रेमी या पति के रूप में प्रेम करने का प्रयास करते है, अतः कृष्ण यह भूमिका भी स्वीकार करते है | हम चाहे जिसे रूप में कृष्ण के पास जाएँ, वे हमें स्वीकार कर लेंगे, जैसा कि भगवद् गीता में वे कहते है : –
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |
मम वत् र्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||
अर्थ : ” जो जिस भाव से मेरी शरण ग्रहण करते है, मैं उसी के अनुरूप उन्हें फल देता हूं | हे पार्थ, मनुष्य सब प्रकार से मात्र मेरे ही पथ का अनुगमन करता है |”
गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए पूर्वजन्म में कठिन तपस्याएँ की थी | इसी प्रकार श्रीमदभगवद में शुक्रदेव गोस्वामी का कथन है कि कृषण के साथ खेलने वाले उनके साथियों ने कृष्ण को सखा रूप में प्राप्त करने के लिए अपने पूर्वजन्मों में कठिन तपस्यायें की थी इस प्रकार कृष्ण के खेल के संगी सखा तथा पत्नियाँ सामान्य जीव नहीं थे चूँकि हमें कृष्णभावनामृत का कोई ज्ञान नहीं है अतः हम उनके कार्य कलापों को खिलवाड़ मान लेते है | किन्तु वास्तव में वे दिव्य है | हमारी इच्छाओं की पूर्ती तो होती है किन्तु वैधानिक रूप से हमारी इच्छाएं तभी पूर्ण हो सकेगी जब हम कृष्ण भावनामृत को अपनाएँ |
कृष्ण को अपने खलने के लिए किसी मित्र की आवश्यकता नहीं थी, न ही उन्हें एक भी पत्नी की इच्छा थी | हम पत्नी ग्रहण करते है, क्योंकि हम कुछ इच्छा पूर्ण करना चाहते है, किन्तु कृष्ण तो अपने आप में पूर्ण( पूर्णम) है | निर्धन व्यक्ति की कामना रहती है कि बैंक में उसके 1000 डालर हो, किन्तु जो व्यक्ति पहले से धनवान होते है उनकी ऐसी कोई इच्छा नहीं होती | यदि कृष्ण पूर्ण पुरुषोतम भगवान है, तो फिर उनमें इच्छाएं क्यों होंगी ? उल्टे, वे दूसरों की इच्छाओं की पूर्ति करने वाले है | मनुष्य इच्छा करता है और ईश्वर उसे पूरा करते है | यदि कृष्ण कोई इच्छा रखते, तो इसका अर्थ है कि वे अपूर्ण होते क्योंकि उनके पास किसी वस्तु का अभाव होता | इसलिए उनका कथन है कि उन्हें किसी इच्छा की पूर्ति नहीं करनी होती | योगेश्वर अर्थात योगियों के ईश्वर के रूप में वे जो भी इच्छा करते है, उसकी पूर्ति तत्काल हो जाती है | कृष्ण द्वारा किसी प्रकार की इच्छा करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता | ***राधा रानी ***
वे अपने भक्तों की इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही पति, प्रेमी या मित्र बनते है | यदि हम कृष्ण को मित्र, स्वामी, पुत्र या प्रेमी के रूप में स्वीकार करें, तो हम कभी भी हताश नहीं होंगे | प्रत्येक जीव का कृष्ण के साथ विशिष्ट संबंध है, किन्तु इस समय वह संबंध प्रच्छन्न है | कृष्णभावनामृत में प्रगति करते ही वह प्रकट हो जायेगा | यद्यपि भगवान पूर्ण है और उन्हें कुछ नहीं करना होता, किन्तु आदर्श स्थापित करने के लिए वे कार्य करते है | वे इस जगत में अपने कार्यकलापों से बंधे नहीं रहते और जो इस जानता है, वह भी कर्म के फल से मुक्त हो जाता है |