धर्म के बारे में हमने आपको बताया वह कर्म वह विचार जो आपकी आत्मा को परमात्मा को ओर ले जाए, धर्म है | अब हमने किसी भी धर्म को अपनाया इसके बाद क्या करें कि हमारी निकटता परमात्मा से बनी रहे | धर्म के बाद आता है योग | योग का नाम लेते ही आपकी सोच एक अलग दिशा में चली जाती है, जिसे आप सूक्ष्म व्यायाम समझते है | आपकी सोच कुछ भी रही हो, मैं अब आपको योग(Dharma And Yoga) के बारे में बताने जा रहा हूँ | योग का अर्थ है जोड़ यानि जमा, गणित के हिसाब से 1+1= 2 यह योग है |
अब हमने उन क्रियाओं को किया जो हमारी आत्मा को परम सत्ता की ओर ले जाये, यानि किसी भी धर्म को अपनाया, उसे अपने साथ जोड़ दो, जोड़ने का अर्थ है इस प्रकार के कार्य निरंतर करते रहे, यह अपने आप योग बनता चला जाता है | सूक्ष्म व्यायाम और प्राणायाम यह भी हमारी आत्मा को परम सत्ता की ओर ले जाते है | जानिए कैसे : आपका घर, मकान, बंग्ला बाहर से देखने में अति सुन्दर लगते है, परन्तु अंदर जाने पर अस्त-व्यस्त सामान पड़ा है, ढ़ेरों गंदगी है, कभी सफाई नहीं होती, ऐसी जगह आप थोड़ी देर भी रुक नहीं पायेंगे | ठीक यही कारण हमारे अपने निजि घर, यानि शरीर का है | शरीर में रोग है , व्याधियां है वहां पर आपका मन कैसे टिक पाएगा | मन उद्वलित हो उठेगा, तनावग्रस्त हो जायेगा | एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है | इसलिए एक स्वस्थ मन के लिए आवश्यकता है एक स्वस्थ शरीर की |
सूक्ष्म व्यायाम से बाह्या शरीर व प्राणायाम से आंतरिक शरीर स्वस्थ व सुद्रढ़ होता चला जाता है | इसलिए यह दोनों क्रियाएँ धारण करने योग्य है और सदा इनके साथ जुड़ा रहना योग कहलाता है | सज्जन व साधू प्रवर्ती के लोगों के संपर्क में रहना, अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करना, अपने नियमित कार्यों को समय पर करना, निस्वार्थ सेवा करना, अपने से बड़ों का सम्मान करना, यह सभी कार्य हमारी आत्मा को परम सत्ता की ओर ले जाते है, इनका धारण करना धर्म और इनके साथ निरंतर जुड़ें रहना ही योग है |
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अब आप कहेंगे कि यदि जुड़ने का नाम योग है तो फिर दुर्जन व्यक्तियों का संग योग क्यों नहीं है ? वहाँ भी तो हम अपने आपको जोड़ ही रहे है | अब मैं इसके बारे में आपको स्पष्ट कर दूँ – यहाँ पर योग के परिणाम देखे जाते है | गणित का परिणाम देखे : 1 + 1 = 2 होता है यह परिणाम स्थाई है, और सदा यही रहने वाला है | इसी प्रकार इस जगत में परम सत्ता की सत्यता और प्रकृति की शुभता स्थाई है | दुर्जन व्यक्तियों का संग कभी स्थाई नहीं रहता वह स्वार्थ पर टिका है, जैसे ही एक दुसरे का स्वार्थ पूरा हुआ कि वह विलग हो गया | इसलिए इसे योग की संज्ञा से दूर रखा है | शुभता और सत्यता की क्रियाओं में जुड़ना ही योग कहलाता है | आप इस योग/(Dharma And Yoga) को अपनाकर अपने जीवन को पूर्ण आनंदित बना सकते है | – आचार्य सत्यनारायण शर्मा |