मुक्ताशुक्ति एक आयुर्वेदिक औषधि है जो मोती सीप के खोल द्वारा निर्मित की जाती है | बाजार में मुक्ताशुक्ति – भस्म और पिष्टी के रूप में मिलती है | वैसे तो मुक्ताशुक्ति भस्म और पिष्टी दोनों के गुण समान से प्रतीत होते है लेकिन उपयोग के आधार पर दोनों अलग-अलग प्रकृति रखते है | मुक्तिशुक्ति भस्म जहाँ स्वभाव से गरम है वहीँ मुक्ताशुक्ति पिष्टी शीतल है | दोनों को बनाने की विधि में थोडा अंतर है | मुक्तिशुक्ति भस्म/Muktashukti Bhasma ke Labh को अग्नि की सहायता से तैयार किया जाता है वहीं मुक्ताशुक्ति पिष्टी को गुलाब जल में घोटकर चन्द्रमा की रौशनी में तैयार किया जाता है इसी कारण से मुक्ताशुक्ति पिष्टी शीतलता प्रदान करने वाली है |
Muktashukti Bhasma ke Labh
शुद्ध मुक्ताशुक्ति इस प्रकार निर्मित की जाती है : –
सबसे पहले मोती शीप के खोल को तीन दिनों के लिए छाछ में भिगो दिया जाना चाहिए | छाछ को प्रतिदिन बदलना चाहिए | दिन के समय छाछ सहित पात्र को खुला करके धुप में रखना चाहिए | 3 दिन बाद अब इस शीप के खोल को छाछ से बाहर निकाल कर गरम पानी से धो ले | मोती शीप के पीछे के काले भाग को काटकर अलग कर दे |
अब इस मोती शीप के शेष भाग को किसी मिटटी के बर्तन में एलोवेरा के गुद्दे के बीच रखे और गजपुट विधि अनुसार इसे अग्नि पर रखे | अब इस शीप के खोल को निम्बू के रस के साथ संसाधित करे और घोटे | अब इसके छोटे छोटे हिस्से बना ले और फिर गजपुट विधि अनुसार आग पर रखे | अब आप शीप के खोल को कूटकर बारीक चूर्ण बना ले | अब यह मुक्ताशुक्ति भस्म उपयोग के लिए तैयार है |
मुक्ताशुक्ति पिष्टी प्राप्त करने के लिए : शुद्ध मुक्ताशुक्ति को बारीक पीसकर गुलाब के जल के साथ 7 दिनों तक घोटना चाहिए |
मुक्ताशुक्ति भस्म और मुक्ताशुक्ति पिष्टी के उपयोग : –
मुक्ताशुक्ति भस्म : – मुक्ताशुक्ति भस्म का मुख्य रूप से पित्त विकार दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है | इसके साथ ही कफ विकार दूर करने में भी मुक्ताशुक्ति भस्म विशेष रूप से प्रभावी सिद्ध होती है | मुक्ताशुक्ति में कैल्शियम की मात्रा बहुत होती है | इसलिए हड्डियों व जोड़ो के दर्द के लिए भी इसे प्रयोग किया जाना चाहिए | पेट के विकार : अम्लपित – यकृत – अल्सर -खट्टी डकारे – सीने में जलन के लिए मुक्ताशुक्ति का प्रयोग किया जाता है |
मुक्ताशुक्ति पिष्टी : – गुण के आधार पर दोनों ही समान गुण रखती है लेकिन जहाँ पेट में गर्मी होने के कारण पित्त विकार उत्पन्न हुआ हो वहाँ मुक्ताशुक्ति भस्म(Muktashukti Bhasma ke Labh) की अपेशा मुक्ताशुक्ति पिष्टी का प्रयोग किया जाना चाहिए | यह पिष्टी पेट को शीतलता प्रदान कर पित्त विकार को शांत करती है |
Muktashukti Bhasma ke Labh
मुक्ताशुक्ति पिष्टी व भस्म के लाभ : –
मुख्य रूप से मुक्ताशुक्ति भस्म व पिष्टी अम्लपित्त और हड्डी या जोड़ो के दर्द के लिए विशेष रूप से लाभकारी औषधि है | यह औषधि पेट में बनने वाले एसिड के हानिकारक प्रभाव को कम करती है | जिससे खट्टी डकारे – पेट फूलना – पेट में जलन – सीने में जलन – पेट दर्द और पेट के अल्सर से आराम मिलता है | मुक्ताशुक्ति में कैल्शियम अधिकता होने से यह हड्डी रोगों में लाभकारी औषधि है |
अन्य जानकारियाँ : –
- स्वर्णमाक्षिक भस्म के लाभ व उपयोग
- नवजीवन रस – मुख्य घटक -लाभ – गुण और उपयोग
- अर्शकुठार रस – गुण और उपयोग | बवासीर रोग में उपयोगी औषधि
- सिद्ध मकरध्वज वटी-आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ औषधि, शारीरिक कमजोरी-Sexual Weakness में गुणकारी
मुक्ताशुक्ति भस्म व पिष्टी बनाने वाली आयुर्वेदिक दवा निर्माता : –
बैद्यनाथ दवा निर्माता : ⇒ मुक्ताशुक्ति पिष्टी – Rs 89 for 10 gram – खरीदे ⇐
⇒ मुक्ताशुक्ति भस्म – Rs 83 for 10 gram – खरीदे ⇐
मात्रा व सेवन विधि : –
युवा व्यक्ति के लिए मुक्ताशुक्ति 250 mg से 500 mg तक हो सकती है | इसे पानी अथवा शहद या गुलकंद के साथ दिया जाना चाहिए(Muktashukti Bhasma ke Labh) | दिन में 2 बार सुबह व शाम औषधि का सेवन किया जाना चाहिए |