सफलता एक ऐसा शब्द जिसके पीछे सब भागते है | सफलता सिर्फ उन्हें ही मिलती है जो इसके काबिल होते है या कहे स्वयं को इसके काबिल बनाते है | जीवन में असफलता के पीछे बहुत सी कहानियां(बहाने छुपे) होती है | सफलता के पीछे व्यक्ति के अनुभव-द्रढ़ निश्चय और एक अच्छा नियोजन होता है | क्या आप जानते है जो व्यक्ति असफ़ल होते है वे ही सही शब्दों में सफल होने के आनंद को महसूस कर सकते है | वैसे तो एक व्यक्ति के सफल होने में बहुत से कारक होते है जिनमें से द्रढ़ निश्चय/Dradh Nishchay सबसे अधिक महत्व रखता है |
Dradh Nishchay :
द्रढ़ निश्चय क्या है :
किसी कार्य में सफल होने का प्रण लेना या सफल होने की मन में ठान लेना ही द्रढ़ निश्चय कहा गया है | द्रढ़ निश्चय एक छोटा सा शब्द लेकिन एक चट्टान को ध्वस्त करने के लिए यह काफी है | असंभव कार्य को भी संभव बना देना द्रढ़ निश्चय द्वारा संभव है |
शारीरिक विकलांगता व मानसिक विकलांगता :
इस संसार में बहुत से ऐसे लोग है जो किसी दुर्घटनावश या फिर जन्म से ही शारीरिक रूप से विकलांग है | लेकिन द्रढ़-निश्चय के बल पर उन्होंने भी ऐसे-ऐसे कार्य कर दिखाए है जो दूसरों के लिए प्रेरणा देने वाले है | एक व्यक्ति जीवन तब सफल बन जाता है जब वह किसी एक के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बन जाये | इसलिए शारीरिक विकलांगता केवल आपके मार्ग की अड़चन भर हो सकती है जिसे द्रढ़ निश्चय/Dradh Nishchay के बल से दूर किया जा सकता है |
मानसिक विकलांगता :
जो लोग मानसिक रूप से विकलांग है | यहाँ मानसिक रूप से विकलांगता का आशय कमजोर व नकारात्मक विचारों से है | मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति और जीवन में सफलता यह बस सयोंग मात्र ही हो सकता है | क्योंकि जो व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर होंगे वे जीवन कभी सफल नहीं हो सकते है | हर छोटे से छोटे कार्य पूर्ण करने में भी उनकी यह मानसिक विकलांगता बीच में आएगी |
इसलिए शारीरिक विकलांग व्यक्ति द्रढ़ निश्चय के बल पर सफल हो सकता है | लेकिन एक शारीरिक रूप से स्वस्थ लेकिन मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति का सफल होना बहुत मुश्किल है |
द्रढ़ निश्चय में कितनी शक्ति है : एक उदाहरण :
- गिरीश शर्मा ने अपने बचपन में एक ट्रेन दुर्घटना में अपना एक पैर खो दिया था | लेकिन उसका बैडमिंटन खेलने का जूनून इतना अधिक था उसकी द्रढ़ इच्छा शक्ति इतनी प्रबल थी कि बड़ा होकर वह एक बैडमिंटन चैम्पियन बना |
- Karoly Takacs नाम के व्यक्ति जो Hungary देश में रहते थे | वर्ष 1938 जब वे आर्मी में थे एक बम विस्फोट में उनका दाया हाथ चला गया | वे शूटिंग में इस बार ओलिंपिक जाने वाले थे | लेकिन उन्होंने अपनी द्रढ़ इच्छाशक्ति के बल पर अपने बाएं हाथ से शूटिंग में दक्षता प्राप्त की और 2 बार ओलिंपिक में गोल्ड जीता |
- अरुणिमा सिन्हा ने अपना एक पैर दुर्घटनावश खो दिया | लेकिन उन्होंने समाज के दया-करुणा भाव को स्वीकार करने से इन्कार किया | और सिर्फ 2 साल बाद ही वे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली एंप्टी महिला बनी | वह नहीं चाहती थी कि यह समाज उन्हें एक विकलांग के रूप में देखे और हर समय उन्हें दूसरों से दया और करुणा के भाव से देखा जाये | द्रढ़ निश्चय/Dradh Nishchay के बल पर ही उन्होंने इतना महान कार्य संभव कर दिखाया जिसे एक स्वस्थ व्यक्ति भी नहीं कर सकता |
अन्य जानकारियाँ :
जीवन में सफल होने के हर सूत्र आपके मष्तिष्क(मन) का हिस्सा है द्रढ़ निश्चय(Dradh Nishchay )/अनुभव और प्लानिंग सभी इसमें छुपे है | शारीरिक अपंगता केवल ना कहने का बहाना मात्र हो सकती है |