अग्निकुमार रस आयुर्वेद की एक उत्तम औषधि है जैसा कि इसके नाम से ही प्रदर्शित होता है यह रस पेट की अग्नि को बढ़ाता है | अग्निकुमार रस पाचक अग्नि के मंद होने से उत्पन्न अजीर्ण , मन्दाग्नि , संग्रहणी , कब्ज आदि , रोगों में इस रस के सेवन से लाभ मिलता है | आँतों में मॉल इकठ्ठा होना , पेट में दर्द , तथा पेट भारी रहना , इस प्रकार की शिकायते इसके सेवन से बहुत ही जल्द मिट जाती है | अग्नि को प्रदीप्त करने के लिए तथा अजीर्ण को मिटाने के लिए यह रस/Agnikumar Ras ke Fayde अच्छा काम करता है |
अग्निकुमार रस : मुख्य घटक :
शुद्ध पारा , शुद्ध गन्धक , अग्नि पर फुलाया हुआ सुहागा , 1 – 1 तोला , शुद्ध बच्छनाग 3 तोला , कौड़ी भस्म और शंख भस्म 2 – 2 तोला और काली मिर्च 8 तोला |
अग्निकुमार रस का प्रयोग कफप्रधान और वातप्रधान व कफ-वातप्रधान अजीर्ण रोग में किया जाता है | इसमें काली मिर्च की मात्रा सबसे अधिक होने के कारण यह उष्णवीर्य है | अतः पित्तजन्य अजीर्ण में इसका प्रयोग जहाँ तक हो सके, नहीं करना चाहिए | पित्तजन्य अजीर्ण में इस रस का प्रयोग करने से विपरीत परिणाम मिल सकते है | अर्थात पित्त की शांति न होकर वृद्धि हो सकती है जिससे पेट , हाथ -पाँव व आँख में जलन होने लगती है |
Agnikumar Ras ke Fayde
अजीर्ण रोग में अग्निकुमार रस : पेट और देह भारी लगने लगे, वमन होने की इच्छा हो , गाल और नेत्र सूज जाए , जैसा भोजन किया हो वैसी ही डकार आने लगे | ऐसी अवस्था में सर्वप्रथम रोगी को उपवास करा आमपाचन करने के बाद, अग्निकुमार रस देने से शीघ्र लाभ मिलता है | जिस अजीर्ण रोग में वायु की प्रधानता रहती है, उसमें बद्धकोष्ठ होने के कारण दस्त हो जाता है | ऐसी हालत में अग्निकुमार रस छाछ या दही के पानी के साथ देने से विशेष लाभ मिलता है |
कास रोग में अग्निकुमार रस : श्वासवाहिनी नली में कफ के संचय हो जाने से श्वासोच्छुवास में कठिनाई होती है, फिर खांसी होने लगती है | इसमें कफाधिक्य के कारण अन्न के प्रति अरुचि, मन्दाग्नि, पेट फूलना, अपचन के कारण जी मिचलाना, खट्टी और चटपटी चीजे खाने की विशेष इच्छा होना, दूध-दही आदि खाने की विल्कुल इच्छा न होना आदि लक्षण उपस्थित होने पर अग्निकुमार रस गरम जल से देना अच्छा है, क्योंकि यह कफ्घं है अतः श्वासवाहिनी से कफ को निकालकर साफ़ कर देता है | जिससे श्वास लेने में तकलीफ नहीं होती | साथ ही कफवृद्धि के कारण जो अफरा आदि उपद्रव उत्पन्न हुए रहते है | उन्हें भी दूर कर रोगी को स्वस्थ कर देता है |
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वमन रोग में अग्निकुमार रस : कफ का संचय विशेष होने पर मन्दाग्नि हो जाती है | जिससे पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने के कारण खाना अच्छी तरह से हजम नहीं हो पाता | आमाशय में कच्चे अन्न का संचय होने से जी मिचलाने लगता है | वमन भी होने लगता है | ऐसी हालत में अग्निकुमार रस का प्रयोग अर्क अजवायन के साथ करने से बहुत फायदा मिलता है(Agnikumar Ras ke Fayde) | क्योंकि यह पित्त को उत्तेजित कर मन्दाग्नि को दूर करता है | कफ विकार को भी नष्ट करता है | फिर पाचन क्रिया दुरुस्त हो अन्न का परिपाक भी ठीक से होने लगता है तथा वमन आदि उपद्रव भी दूर हो जाते है |