हमारे पितरों( पूर्वजों) का क्रियाकर्म आदि विधि सम्मत ढंग से नहीं किये जाने पर पितर हमें सताते है | इसे ही पितृऋण/(Pitra Rin in Hindi) कहते है | पितृऋण का सबसे बड़ा सिद्धांत है – ‘ करे कोई, भरे कोई ‘ | पिता की गलती का परिणाम पुत्र को भोगना होता है | अनजाने में महाराज दशरथ ने श्रवण कुमार को तीर मार दिया था | श्रवण की मृत्यु से दुखी होकर उसके माता-पिता ने यह श्राप दिया – ” जैसे हम पुत्र वियोग में मर रहे है, वैसे ही आप भी पुत्र बिछोह के कारण मरेंगे |
महाराज दशरथ अंत में पुत्र वियोग में ही मरे | श्रवण कुमार को तीर मारना उनका अपना दोष था | लेकिन भगवान श्री राम का कोई अपराध न होते हुए भी पिता की गलती के कारण उन्हें जंगल में रहना पड़ा | अतः यह कहना पूर्ण रूप से सत्य है कि आपको जो फल मिलने वाला है वह केवल आप ही के कर्मो का फल नहीं होगा बल्कि आपको अपने पूर्वजों के कर्मों के भी फल भोगने पड़ेंगे |
Pitra Rin in Hindi
जन्म कुंडली में पितृऋण की पहचान कैसे करे :-
पितृऋण की सबसे पहचान है कि इनसे होने वाले अनिष्ट के कारण घर के सभी लोग प्रभावित होते है | परिवार के एक सदस्य की जन्म कुंडली में जो गृह पीड़ित है, वे गृह पीड़ित अवस्था में अन्य व्यक्तियों की कुंडलियों में भी होते है | जो गृह अपने घर में अपने कारक घर में या शत्रु के घर में बैठा हो तो वह पीड़ित माना जाता है | पीड़ित गृह जिन रिश्तेदारों के कारक होते है उन्हीं रिश्तेदारों का पाप और शाप पितृदोष होता है | आइये एक ही परिवार के सदस्यों की कुंडलियों के विश्लेषण द्वारा इसे समझने का प्रयत्न करते है :
उपरोक्त चित्र में पहली कुंडली पिता की है जिसमें चौथे घर में ब्रहस्पति स्वग्रह में बैठा है | वहीं पर शुक्र है | इसलिए शुक्र से ब्रहस्पति पीड़ित हो गया है | चौथे घर में ही शनि, केतु बैठे है | शनि और केतु शत्रु गृह है चन्द्र अपने घर से दूर दसवें घर में राहु के साथ बैठा है | वह शनि और केतु से प्रभावित है | इस जन्म कुंडली में पूर्ण कालसर्प योग बनता है | ब्रहस्पति और चन्द्र पीड़ित होने से इस जन्मकुंडली में ‘पितृऋण ‘ (Pitra Rin in Hindi)की स्पष्ट पहचान होती है |
उपरोक्त चित्र में दूसरी कुंडली पुत्र की है, जिसमें नौवे घर में स्वग्रही ब्रहस्पति है | वह नौवें तथा बाहरवें घर का मालिक है | ब्रहस्पति का शत्रु बुध बाहरवें घर में केतु के साथ बैठा है | इसलिए बुध से ब्रहस्पति पीड़ित है | चौथे घर का मालिक चन्द्र छठे घर में राहु के साथ बैठा है | इसलिए चन्द्र भी राहु से पीड़ित है | तीसरे और छटे घर का मालिक बुध भी बाहरवें घर में केतु से पीड़ित है | इस तरह इस जन्म कुंडली में भी पितृऋण/(Pitra Rin in Hindi) बनता है |
उपरोक्त चित्र में तीसरी कुंडली प्रपौत्र की है जिसमें चन्द्र और ब्रहस्पति दोनों पीड़ित है | ब्रहस्पति दुसरे घर में बैठा है | साथ में शुक्र है जो ब्रहस्पति का शत्रु है | अतः शुक्र से ब्रहस्पति पीड़ित है | चौथे घर में राहु बैठा है | यह घर चन्द्र का है | चन्द्र यहाँ अपने ही घर में बैठा है लेकिन राहू ने उसको ग्रस लिया है इसलिए चन्द्र भी पीड़ित हो गया है | राहु, चंद्र शत्रु है |
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ये सभी कुंडलियाँ एक ही परिवार की है | पहली पिता की , दूसरी उसके पुत्र की व तीसरी कुंडली पौते(प्रपौत्र) की है | अतः यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि इस परिवार पर तीन पीढ़ियों से पितृऋण/(Pitra Rin in Hindi) का अभिशाप चलता आ रहा है | आइये जानते है कि यह अभिशाप किस पूर्वज का है | ब्रहस्पति को पिता का कारक माना गया है | और चन्द्र को माता का | इन कुंडलियों में ब्रहस्पति और चन्द्र दोनों पीड़ित है | इसलिए स्पष्ट रूप से पहली कुंडली वाले को माता-पिता का शाप है | गृह के अपने घर में या कारक घर में उसका शत्रु बैठा हो तो वह पीड़ित होता है | इस नियम के अनुसार यहाँ चन्द्र और ब्रहस्पति दोनों पीड़ित है , फलस्वरूप पितृऋण है |