एक धन संपन्न व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था | काल चक्र के प्रभाव से धीरे-धीरे वह कंगाल हो गया | उस की पत्नी ने कहा कि सम्पन्नता के दिनों में तो राजा के यहाँ आपका अच्छा आना जाना था | क्या विपन्नता में वे हमारी मदद नहीं करेंगे, जैसे श्री कृष्ण ने सुदामा की की थी | पत्नी के कहने पर वह भी सुदामा की तरह राजा के पास गया |
द्वारपाल ने राजा को सन्देश दिया कि एक निर्धन व्यक्ति आपसे मिलना चाहता है और स्वयं को आपका मित्र बताता है | राजा भी श्री कृष्ण की तरह ही मित्र का नाम सुनते ही दौड़े चले आये और मित्र को इस हाल में देखकर द्रवित होकर बोले कि मित्र बताओ, मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकता हूँ ?
मित्र ने सकुचाते हुए अपना हाल कह सुनाया | इस पर राजा बोले हे मित्र : चलों मैं तुम्हे अपने रत्नों के खजाने में ले चलता हूं | वहां से जी भरकर अपनी जेब में रत्न भरकर ले जाना | लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि तुम्हें सिर्फ 3 घंटे का ही समय मिलेगा | यदि तुम उससे अधिक समय लोगे तो तुम्हे खाली हाथ बाहर आना होगा | निर्धन व्यक्ति ने उत्तर दिया : ठीक है चलो !
निर्धन व्यक्ति रत्नों से भरे खजाने के अंदर चला जाता है | वहां रत्नों के भण्डार और उनसे निकलने वाले प्रकाश की चकाचौंध देखकर हैरान हो जाता है | समय सीमा को ध्यान में रखते हुए उसने भरपूर रत्न अपनी जेब में भर लिए | वह बाहर आने लगा तो उसने देखा कि दरवाजे के पास रत्नों के बने छोटे-छोटे खिलौने रखे थे जो बटन दबाने पर तरह-तरह के खेल दिखाते थे | उसने सोचा कि अभी तो समय बाकी है, क्यों न थोड़ी देर इनसे खेल लिया जाए ? किन्तु यह क्या ?
वह खिलौनो के साथ खेलने में इतना व्यस्त हो गया कि समय सीमा का तो ध्यान ही नहीं रहा | उसी समय सीमा समाप्त होने की घंटी बज गयी और उस व्यक्ति को खाली हाथ ही वहां से लौटना पड़ा |
राजा ने कहा – मित्र निराश होने की आवश्यकता नहीं है | चलो, मैं तुम्हें अपने स्वर्ण के खजाने में ले चलता हूं | वहां से जी भरकर सोना अपने थैले में भरकर ले जाना, किन्तु समय सीमा वहाँ भी तुम्हे ध्यान रखना होगा |
निर्धन व्यक्ति अब जैसे ही स्वर्ण के खजाने के कक्ष में अंदर जाता है तो देखता है कि सारा कक्ष सुनहरे प्रकाश से जगमगा रहा है | उसने शीघ्रता से अपने थैले में सोना भरना आरम्भ कर दिया | तभी उसकी नजर एक घौड़े पर पड़ी जिसे सोने की काठी से सजाया गया था | अरें ! यह तो वाही घोड़ा है जिस पर बैठकर मैं राजा साहब के साथ घूमने जाया करता था | वह उस घोड़े के निकट गया, उस पर हाथ फिराया और कुछ समय के लिए उसकी सवारी करने की इच्छा से उस पर बैठ गया |
पर यह क्या ? समय सीमा इस फिर समाप्त हो गयी ! और वह घोड़े की सवारी का ही आनंद लेता रह गया | अंत में उसे वहां से भी खाली हाथ ही लौटना पड़ा |
राजा ने कहा मित्र, कोई बात नहीं | निराश होने की आवश्यकता नहीं है | अभी तांबे का खजाना बाकी है | चलों, मैं तुम्हें अपने तांबे के खजाने में ले चलता हूं | वहाँ से जी भरकर तांबा अपने बोरे में भरकर ले जाना , किन्तु समय सीमा का वहाँ भी ध्यान रखना |
निर्धन व्यक्ति मन ही मन सोचने लगा – मैं तो जेब में रत्न भरने आया था और बोरे में तांबा भरने की नौबत आ गई | उसने सोचा थोड़े तांबे से तो काम नहीं चलेगा इसलिए उसने कई बोरे ताम्बे के भर लिए | तम्बा भरते-भरते उसकी कमर दुखने लगी लेकिन फिर भी वह तम्बा भरने में लगा रहा | अंत में विवश होकर उसने आस-पास सहायता के लिए कुछ देखा तो उसे एक पलंग बिछा हुआ दिखाई दिया | उस पर सुस्ताने के लिए थोड़ी देर लेटा तो नींद आ गई और अंत में वहाँ से भी खाली हाथ ही बाहर निकाल दिया गया |
क्या इसी प्रकार हम भी अपने जीवन में अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाएंगे ? बचपन खिलौनों के साथ खेलने में , जवानी विवाह के आकर्षण में और गृहस्थी की उलझन में बिता दी | बुढ़ापे में जब कमर दुखने लगी तो पलंग के सिवा कुछ दिखा नहीं | समय सीमा समाप्त होने की घंटी बजने वाली है |
किसी ने सच ही कहा है : –
” यूँ ही आता रहा, यूँ ही जाता रहा
लख चौरासी के चक्कर लगाता रहा
क्यों ने पहचान पाया तू श्वासों का मोल
अपना हीरा जन्म यूँ गवाता रहा “