काशी के नाम से विख्यात बीकानेर अपने धर्म परायण स्वरुप के लिए जाना जाता है | इस छोटी काशी का पश्चिमी हिस्सा धर्म भूमि के रूप में देखा जाता है | मठों, मंदिरों, बगेचियों का यह क्षेत्र एक प्रकार से तीर्थों का गढ़ है | रियासत काल के राजाओं ने भी बीकानेर की जानता की धार्मिक भावना को पूरा-पूरा आदर-सम्मान दिया | प्रातः काल के परकोटे के भीतर वैदिक मन्त्रों का सस्वर उच्चारण सुनकर बाहर आये ने इस शहर को छोटी काशी की उपमा दी थी | यह किवदंति जन मान्यता के रूप में फैलती गई और आज बीकानेर की पहचान देश की छोटी काशी के रूप में होने लगी है |
महाराजा अनूप सिंह बीकानेर के लोकप्रिय राजाओं में से एक थे | उनके शासनकाल में संस्कृत भाषा का प्रचुर साहित्य रचा गया था | महाराजा अनूप सिंह स्वमं संस्कृत अनुरागी थे | उन्होंने स्वमं साहित्य सृजन किया | उनकी कृतियाँ अनूप संस्कृत पुस्तकालय में आज भी सुरक्षित है |
महाराजा अनूप सिंह के समय में जूनागढ़ के हर मंदिर में किसी जटिल बात के कारण कथावाचक व्यास की समस्या आ खड़ी हुई थी | पूर्व में यह कथा लालाणी व्यास जाति द्वारा की जाती थी | जूनागढ़ के हर मंदिर के तत्कालीन पुजारी आचार्य धरणीधर तथा महानंद हुआ करते थे | महाराजा अनूप सिंह ने हर मंदिर की कथा समस्या उन्हें बतलाई | तब आचार्य धरणीधर तथा महानंद भ्राताओं ने मेड़ता के गोलवाल पारीक व्यास महाकवि हरिद्विज एवं हरिदेच को बुलाकर उन्हें हर मंदिर की कथा व्यवस्था सुपुर्द करवाई तथा महाराजा अनूप सिंह ने उन्हें ससम्मान बीकानेर में बसाया |
धीरे-धीरे गोलवाल पारीक व्यास जाति ने अपनी विद्वता से जन सामान्य को भी प्रभावित कर लिया | इसके फलस्वरूप उन्हें जानता के भीतर भी कथा वाचन तथा गरुड़ पुराण वाचन का कार्य मिल गया | इस प्रकार से गोलवाल पारीक व्यास जाति की आर्थिक स्थिति भी उन्नत होती गयी |
हरिदेव के पुत्र पं. शिवराम ने वि. सं. 1760 के लगभग नत्थुसर गेट के बाहर एक बगेची का निर्माण करवाया | पश्चात् वहां गणेश जी मंदिर की स्थापना की गई | यह कथा व्यासों की बगेची कालांतर में बड़ा गणेश मंदिर के रूप में प्रसिद्द हो गयी | संस्कृत संभाषण में दक्ष 80 वर्षीय पंडित जयनारायण व्यास बताते है कि बड़ा गणेश मंदिर का परिक्षेत्र लगभग 13500 गज है | इस विशाल परिक्षेत्र में भगवान गणेश के अलावा सिद्धेश्वर महादेव, पातालेश्वर महादेव, कोडाणा भैरव के मंदिर भी अवस्थित है | गोलवाल परीकों के 5 नाड़े भी इस परिक्षेत्र में अवस्थित है |
प्रारंभ में यहाँ की पूजा का दायित्व शाकद्वीपीय ब्राहमणों को सौपा गया था | महाराजा गंगासिंह जी के समय में इस भव्य लम्बे-चौड़े परिसर का पट्टा बनाया गया, जिसकी फाइल में भी शाकद्वीपीय ब्राहमणों द्वारा गणेश जी की भी पूजा करने का उल्लेख मिलता है |
भगवान गणेश का यह मंदिर बीकानेर की जानता का प्राणधार है |प्रतिदिन सैकड़ो की तादाद में भक्त गण यहाँ दर्शनार्थ आते है | प्रत्येक सप्ताह बुधवार के दिन यहाँ भारी भीड़ रहती है |
बुधवार के दिन मंदिर के बाहर अहाते में बूलमालाओं, मोदकों की अस्थायी दुकाने लगती है | चूँकि बीकानेर शहर का फैलाव विस्तृत हो चूका है तथा जनसँख्या भी बढ़ चुकी है | इस कारण से पूर्व से पश्चिम छोर की तरफ आना-जाना सहज नहीं रह गया | उसी प्रकार से उत्तर से दक्षिण छोर की तरफ भी आना-जाना दूभर है | मगर इस भगवान गणेश की महिमा ही कहेंगे कि बुधवार के दिन चारों दिशाओं से अंतिम छोरों से भी लोग बड़े गणेश जी के दर्शन करने आते है |
भगवान गणेश का मंदिर इस विस्तृत भू-भाग के पश्चिम छोर पर स्थित है | गणेश जी के मंदिर में प्रवेश करने पर लम्बा-चौड़ा प्रांगन आता है | यह प्रांगण आधा खुला रहता है तथा आधा ढका हुआ है | अर्थात प्रांगण म के अर्धभाग में छत के रूप में लोहे के बड़े-बड़े सुराखों वाली जलियाँ लगी हुई है |
गर्भगृह में संगमरमर की चौकी के ऊपर भगवान गणेश विराजमान हैं। रामपुरिया जैन पी.जी. कालेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. राधाकृष्ण रंगा के अनुसार भगवान गणेश का यह विग्रह लगभग अढ़ाई फुट चौड़ा तथा सवा तीन फुट ऊंचा है। इस आकर्षक विग्रह की चार भुजाएं हैं जिनमें क्रमश: गदा, फरसा, माला, मोदक है।
भगवान साधक की मुद्रा में बैठे हैं। भगवान के विग्रह में सर्प लिपटा हुआ है। गले में जनेऊ है, भगवान का एक दांत है सूंड बाईं ओर है। यह विग्रह आकर्षक लाल पत्थर पर तराशा हुआ है। विग्रह में भगवान गणेश अपने हाथ से ही मोदक का आहार कर रहे हैं। भगवान के ललाट पर चंद्रमा है। साधक अवस्था में भगवान को धोती पहने हुए दिखाया गया है। भगवान के इस विग्रह का निर्माण बारह पुष्य नक्षत्रों के दौरान किया गया है। पुष्य नक्षत्र 27 दिनों में एक बार आता है। कलाकार द्वारा प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को मूर्त तराशने का कार्य किया गया।
बाहरी परिवेश में भगवान का जम कर शृंगार किया हुआ था। सिर पर कृत्रिम मुकुट तथा गले में विधि प्रकार के पुष्पों की मालाएं सुशोभित हो रही थीं। भगवान के विग्रह के निम्र भाग में सफेद रंग की वास्तविक धोती पहनाई हुई थी जो बीकानेर के इस एकमात्र मंदिर में ही दर्शनीय है। भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को मंदिर में पांव रखने तक की जगह नहीं रहती। उस दिन यहां भारी मेला लगता है।
भगवान गणेश का यह मंदिर कन्याओं के लिए अभीष्ट सिद्ध हुआ है यहां कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन दर्शन करने आती हैं तथा मनोवांछित वर की कामना करती हैं। योग्य व गुणी वधू की तलाश में लड़के वाले यहां दर्शन करने के लिए अवश्य आते हैं। भगवान गणेश का यह मंदिर सभी प्रकार से मनोवांछित फल देने वाला है। आज इस मंदिर की देखभाल पारिक व्यास (गोलवाल) समाज करता है।