क्या आपने कभी सोचा है कि एक प्रेम जो आप अपने माता-पिता, भाई-बहन और अपने दोस्तों से करते है और दूसरा प्रेम किसी लड़के या लड़की से जो आपके लिंग से opposit है | दोनों प्रेम में क्या अंतर है ? क्या आपने कभी इस विषय में सोचा है ? जो प्रेम आप अपने परिवार और दोस्तों से करते है उसमें किसी प्रकार की इच्छाएं नहीं होती है यह पूर्णतः निस्वार्थ भाव से निहित है | आप उनसे प्रेम करते है बस इतना ही, न आप इससे अधिक सोचते है और न कुछ अभिलाषा रखते है, हाँ इतना अवश्य है कि आप भी उनसे प्रेम की ही अपेक्षा रखते है इसके अतिरिक्त आपको इस प्रेम में किसी प्रकार के भौतिक और शारीरिक सुख की कोई अभिलाषा नहीं होती है |
आइये अब बात करते है उस प्रेम कि जो एक बच्चे के किशोर अवस्था में पहुचने के बाद अपने से opposite लिंग के लड़के या लड़की के साथ होता है | मान लेते है कि आप एक लड़के है और आपकी उम्र 15 या 16 वर्ष है, आपकी इस उम्र में शारीरिक विकास तेजी से हो रहा है और इस समय आपमें उत्तेजना और वासना के गुण विकसित होने लगे है यही वह समय है जब आप किसी लड़की के प्रति आकर्षित होने लगते है | यह उम्र तो बस शुरुआत भर है आपमें उत्तेजना और वासना के विकास के चरण की, और जैसे- जैसे ये गुण आपके अंदर और अधिक विकसित होने लगते है लड़कियों के प्रति आपका आकर्षित होना भी बढ़ने लग जाता है |
लड़कियों के प्रति आपका आकर्षण स्वभाविक है, पूर्णतः प्राकृतिक है, यह कुदरत की देन है और जीवन की उत्पत्ति का आधार है | जो प्रेम लड़कों व लड़कियों में चर्चा का विषय बना रहता है सही शब्दों में उस प्रेम के विषय में गहन जानकारी किसी को नहीं होती | उन्हें बस इतना अवश्य अवगत हो जाता है कि वह उस लड़के या लड़की से प्रेम करता है/करती है |
Prem Ki Paribhasha :
एक लड़का व लड़की के बीच प्रेम की शुरुआत :
कुदरत ने हमें इस प्रकार का बनाया है कि हम अपने से opposite लिंग से आकर्षित होते है | आइये अब उदाहरण से समझते है : एक लड़का किसी लड़की को देखता है उसके मन में कुछ अलग प्रकार की तरंगे उठने लगती है वह उन तरंगों को समझ नहीं पाता, क्योंकि अभी उसमें इतनी समझ विकसित नहीं हुई है कि वह वासना-उत्तेजना और प्रेम में अंतर कर सके | अब वह लड़का अपने दोस्तों को इस विषय में बताता है कि उनसे उस लड़की को देखा और तब से उसके दिल में, मन में न जाने क्या हो रहा है ? उसके दोस्त भी उसके जैसे ही है उन्हें भी पूर्ण ज्ञान नहीं है किन्तु फिर भी वे इस परिस्थिति में अपने दोस्त का मार्गदर्शन कुछ प्रकार से करते है : अरे तुम्हें तो उस लड़की से प्यार हो गया है |
उस लड़के के मन में उत्तेजना और वासना की एक छोटी सी घटना घटित होती है और दोस्तों के कहने पर वह उसे प्यार समझ लेता है | अब यहाँ से समस्या और भी बड़ी होने लगती है जब उस लड़के के अवचेतन मन ने यह मान लिया कि वह उससे प्यार करता है | अब उसका अवचेतन मन उसके ह्रदय और शरीर को बार-बार अहसास कराता है कि वह उस लड़की से प्यार करता है | और देखा जाए तो यहाँ से प्यार की शुरुआत हो चुकी है | उस लड़के को प्यार नहीं था किन्तु दोस्तों के कहने मात्र से उसने यह मान लिया कि वह उस लड़की से प्यार करता है | उस लड़के ने तो मात्र आँखों से उसे देखा भर था और प्यार जैसी बड़ी घटना उसके साथ घटित हो गयी |
उस लड़के के सौभाग्य से यदि कुछ दिनों में उस लड़की से उसकी बातचीत शुरू हो जाती है और लड़की के साथ भी कुछ इसी प्रकार की घटना होती है वह भी इसे प्यार समझ लेती है | अब दोनों को एक दुसरे का साथ पसंद है | एक दुसरे से बातें करना पसंद है | दोनों एक दुसरे से प्रेम करने का दावा करने लगे है | एक दुसरे के बिना वे अब रह नहीं सकते है | एक दुसरे को ख़ुशी देना ही उनका लक्ष्य बन गया है | किन्तु अभी तक दोनों ने एक दुसरे को स्पर्श भर भी नहीं किया है | क्या यह प्रेम है ?
हाँ, यह प्रेम हो सकता है किन्तु क्या वे जीवन भर इस तरह से ही रह सकते है बिना एक दुसरे को स्पर्श किये, मै कहता हूँ वे नहीं रह सकते, यदि वे रह सकते है तो उनके बीच प्रेम का अभाव होने लगेगा | क्योकि इस प्रेम को शारीरिक तृप्ति की आवश्यकता है |
यदि दोनों के बीच प्रेम है तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी अवश्य घटित होंगे | इस प्रेम में शारीरिक तृप्ति निहित है | बिना शारीरिक तृप्ति के इस प्रेम की व्याख्या पूर्ण नहीं होती है |
प्रेम की नई परिभाषा :
प्रेम की परिभाषा को समझने से पहले इसे दो भागों में बांटना जरुरी है | प्रेम को मुख्य रूप से 2 भागों में वर्गीकृत करके विस्तार से समझा जा सकता है |
पहला प्रेम : अपने माता-पिता, भाई-बहन और दोस्तों के प्रति प्रेम निस्वार्थ भाव से होता है | इसमें आप किसी प्रकार के भौतिक व शारीरिक सुख की अभिलाषा नहीं रखते है | बस आप उनसे प्रेम करते है और वे आपसे, बस इतना काफी है |
दूसरा प्रेम : यह प्रेम आप अपने से opposite लिंग के साथ करते है | इस प्रेम में आप शारीरिक सुख की अभिलाषा रखते है | इस प्रेम में उत्तेजना की तृप्ति होना आवश्यक है | बिना शारीरिक सुख की तृप्ति के यह प्रेम अधूरा है | इस प्रेम में यदि शारीरिक सुख की तृप्ति के बाद प्रेम फीका होने लगे तो समझ जाए कि आपको प्रेम कभी था ही नहीं जो अब फीका होने लगा है आप सिर्फ आकर्षण में थे जो अब तृप्ति के बाद कम होने लगा है | बहुत से लोगों को आकर्षण और प्रेम में अंतर ही समझ नहीं आता है वे आकर्षण को ही प्रेम समझ लेते है |
अन्य जानकारियाँ :
पहला और दूसरा प्रेम दोनों एक हो जाते है यदि दुसरे प्रेम में शारीरिक तृप्ति हो जाती है | अब दोनों प्रकार के प्रेम में कोई अंतर नहीं रह गया है | प्रेम के अर्थ को शब्दों में समझाना थोड़ा कठिन हो जाता है क्योंकि यह एक एहसास है जो अलग-अलग लोगों के लिए, अलग-अलग हो सकता है | प्रेम में मैं क्या अनुभव करता हूँ और आप क्या अनुभव करते है इसमें अंतर हो सकता है |