जहरमोहरा एक पत्थर है | यह रंग में सफ़ेद कुछ पीला और हरापन लिए हुए होता है | यूनानी दवा बेचनेवालों के यहाँ इसी नाम से मिलता है | यूनानी वैद्य(हकीम) लोग इसका प्रयोग अधिक करते है | इसके श्रेष्ठ गुणों के कारण वैद्यों में भी इसका प्रचार बढ़ा है | जो वजन में हल्का और चिकना हो, वह अच्छा समझा जाता है | दिल्ली, अमृतसर के व्यापारी इसके टुकड़ों को चोकोर कर विशेष घिसाई कर उसको जहरमोहरा खताई के नाम से महंगा बेचते है (Jahar Mohra Khatai Pishti Bhasma)| परन्तु गुणों की द्रष्टि से देखा जाये तो बिना घिसा भी उत्तम ही माना गया है |
Jahar Mohra Khatai Pishti Bhasma
जहरमोहरा खताई औषधि :-
यह भस्म और पिष्टी मातदिल अर्थात न अधिक गरम और न अधिक शीतल यानि समशीतोष्ण है | इसलिए हर प्रकृति( वात-पित्त-कफ़) वालों के लिए काम आ सकती है | यह ह्रदय और मस्तिष्क को बल देनेवाली तथा पित्तनाशक है |
दाह- हैजा-अतिसार एवं यकृत विकार, दिल की घबराहट, जीर्ण ज्वर, बालकों को हरे-पीले दस्त एवं सूखा रोग में इसका सेवन किया जाता है | यह बल, वीर्य और कान्ति को बढाती है | यह बच्चों के लिए अमृततुल्य औषधि है |
मात्रा और अनुपात : –
1 से 2 रत्ती दिन 2 से 5 बार तक या आवश्यकतानुसार शहद, मौसम्बी का रस, बेदाना अनार का रस, खमीरे गाजवान, गाय का दूध आदि में से किसी एक अनुपात के साथ दे |
जहरमोहरा खताई औषधि के लाभ :-
‘ कराबादीन कादरी ‘ नामक यूनानी ग्रंथ में लिखा है कि जहरमोहरा को अग्नि में रखने पर उसमें से पानी से छूटता है, उसे जीर्ण ज्वर के रोगी को पिलाने से ज्वर दूर हो जाता है | इसके अतिरिक्त यह औषध विष के उपद्रवों को दूर करने के लिए बहुत प्रभावशाली मानी जाती है | हकीम लोग इसे विषघ्न मानते है |
यद्यपि यह स्वयं विषैला नहीं है, किन्तु इसमें जहर दूर करने की अद्भुत शक्ति है | सांप, बिच्छु, अफीम इत्यादि किसी प्रकार के स्थावर-जंगम विष के उपद्रवों में इसकों पानी में घिसकर पिलाने से लगातार वमन होकर जहर का प्रभाव दूर हो जाता है | विषजन्य पुराने विकारों में जहरमोहरा को दूध के साथ घिसकर या दूध में मिलाकर दो-तीन महीने लगातार सेवन करने से लाभ होता है | इसके विषघ्न गुणों के कारण ही इसका नाम ‘ जहरमोहरा ‘ है |
प्लेग, हैजा, मलेरिया, माता इत्यादि संक्रामक रोग जोरों से फ़ैल रहे हो, उस समय जहरमोहरा पिष्टी 3 रत्ती और निर्मली बीज चूर्ण 2 रत्ती, दोनों को एकत्र मिला, गुलाब जल के साथ सेवन करने से संक्रामक रोगों का कुछ भी भय नहीं रहता(Jahar Mohra Khatai Pishti Bhasma) |
देश-विदेश के दूषित जल और हवा के कारण ज्वर,अतिसार,सूजन,निर्बलता आदि उपद्रव शारीर में उत्पन्न हो जाते है | इन उपद्रवों को शांत करने में यह प्रभावशाली औषध है | इस प्रकार ह्रदय,मस्तिष्क,यकृत और पाचन-इन्द्रियों को बल देने में भी यह आश्चर्यजनक लाभदायक है |
शीतला की बीमारी में जहरमोहरा का प्रयोग : – जहरमोहरा पिष्टी आधी रत्ती, मोती पिष्टी चौथाई रत्ती, संगेयशव आदि रत्ती, कहरवा पिष्टी आधी रत्ती, इन सब को अर्क गुलाब या अर्क केवड़ा में घोंटकर प्रातः, सायं गोदुग्ध या बकरी के दूध के साथ देने से बहुत जल्दी लाभ होता है | चेचक होने से पूर्व यदि इसका सेवन किया जाए, तो चेचक निकलने का डर नहीं रहता है |
बालकों के सूखा रोग के लिए : – जहरमोहरा पिष्टी 2 रत्ती, बंशलोचन 2 रत्ती, छोटी इलायची चूर्ण आधी रत्ती और प्रवाल पिष्टी 2 रत्ती में मिलाकर शहद के साथ चटावे, ऊपर से दो-चार चम्मच चूने का पानी पिला दे या गाय का दूध पिला दें, इससे बालकों को सूखा रोग समूल नष्ट हो जाता है | सूखा रोग के लिए यह सर्वोतम औषध है |
अन्य जानकारियाँ : –
रक्तचाप वृद्धि में जहरमोहरा का प्रयोग : – हाई ब्लड प्रेसर से सिर में भारीपन नेत्रों में लाली, घबराहट आदि लक्षण उत्पन्न हो तो जहरमोहरा खताई पिष्टी को सोड़ा बाईकार्ब और गुलकंद के साथ देने से रक्त का दबाव कम हो जाता है(Jahar Mohra Khatai Pishti Bhasma) | एवं तज्जन्य उपद्रव भी शांत हो जाते है |