शिव तांडव स्त्रोत | लंकापति रावण द्वारा रचित भगवान शिव की शक्ति और सौंदर्य का अद्भुत परिचय

By | March 10, 2018

शिव तांडव स्त्रोत मनुष्य के सभी पापों को हरने वाला व भगवान शिव की महिमा का गुणगान करने वाला बहुत ही सुंदर स्त्रोत है | सुनने में बहुत ही श्रवणप्रिय शिव तांडव स्त्रोत की रचना लंकापति रावण ने मात्र कुछ ही पलों में की थी | भगवान शिव के भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा अनुसार भोलेनाथ की पूजा-आराधना करते है | शिव तांडव स्त्रोत/Shiv Tandav Stotra in Hindi द्वारा भगवान शिव की आराधना विशेष रूप से फल प्रदान करने वाली है | शिव तांडव स्त्रोत द्वारा भगवान शिव की आराधना करते समय इसके उच्चारण पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए | लयबद्धता से साथ किया गया शिव तांडव स्त्रोत का उच्चारण भगवान शिव को अतिप्रिय है व साथ ही जो भी प्राणी इस स्त्रोत को सुनता है वह भी भक्तिभाव से आनन्दित हो उठता है |

shiv tandav stotra in hindi

शिव तांडव स्त्रोत की रचना कब और कैसे हुई :-

एक बार लंकापति रावण अपनी शक्ति के नशे में चूर होकर कैलाश पर्वत जा पहुँचा जहाँ भगवान शिव साधना में लीन रहते थे | अपनी शक्ति का परिचय देते हुए लंकापति रावण ने कैलाश पर्वत को अपने हाथों पर उठा लिया | जैसे ही भगवान शिव को इस घटना का आभास हुआ उन्होंने अपने पैर का एक अंगूठा पर्वत पर टिका दिया जिससे कैलाश पर्वत उसी स्थान पर स्थिर हो गया | ऐसा होने से रावण के हाथ अब कैलाश पर्वत के नीचे दब गये | काफी प्रयत्न के बाद भी रावण अपने हाथ को वहाँ से नहीं निकाल पाया |

दर्द से व्याकुल हो रावण के मुख से ” हे शंकर मेरी रक्षा करो ” ये शब्द निकल गये और कुछ ही पलों में लंकापति रावण ने शिव तांडव स्त्रोत/(Shiv Tandav Stotra in Hindi) की रचना कर इसका गायन करना शुरू कर दिया | लंकापति रावण के मुख से निकले विचित्र और श्रवणप्रिय शिव तांडव स्त्रोत से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और लंकापति रावण के हाथ को मुक्त करते हुए लंकापति को ” रावण ” का नाम दिया | तभी से लंकापति को रावण के नाम से जाना गया |

Shiv Tandav Stotra in Hindi :

शिव तांडव स्त्रोत :-

शिव ताण्डव स्तोत्र

जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

भगवान शिव की नित्य पूजा के पश्चात् शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करना फलदायी माना गया है | सोमवार के दिन भगवान शिव के मंदिर जाकर विधिवत शिवलिंग पूजा करनी चाहिए व अंत में शिव तांडव स्त्रोत/Shiv Tandav Stotra in Hindi का पाठ करना चाहिए |

अन्य जानकारियाँ :-

शिव तांडव स्त्रोत के नियमित उच्चारण से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | मृत्यु पश्चात् जातक मोक्ष को प्राप्त होता है | ऐसे जातक के मन से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है | सभी प्रकार के भय से मुक्ति , शत्रुओं से छुटकारा व घर में सुख-शांति बनाये रखने के लिए शिव तांडव स्तोत्र/(Shiv Tandav Stotra in Hindi) का पाठ करना फलदायी सिद्ध होता है |