बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध को विश्व के प्रसिद्द धर्म सुधारकों व दार्शनिकों में सबसे अग्रणी माना जाता है | दूसरों के प्रति दया, करुणा भाव रखने वाले गौतम बुद्ध सभी के लिए प्रेरणा के स्त्रोत है | भगवान गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पु. में कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी वन में हुआ | आपके पिता शुद्धोधन शाक्य कपिलवस्तु के शासक थे | आपकी माता का नाम महामाया था जो देवदह की राजकुमारी थी | एक बार महामाया अपने मायके देवदह जा रही थी तो बीच रास्ते में ही प्रसव पीड़ा होने के कारण गौतम बुद्ध रूप में एक बच्चे को जन्म दिया | गौतम बुद्ध(Bhagwan Goutam Buddh Jivani)के जन्म के 7 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया | गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था | उनका पालन पोषण उनकी मौसी गौतमी में किया |
सिद्धार्थ स्वाभाव से बहुत ही दयावान थे :
सिद्धार्थ बचपन से ही दूसरों के प्रति दया भाव रखने वाले थे | उनसे दूसरों का दुःख नहीं देखा जाता था इसलिए वे कभी भी किसी खेल में इसलिए नहीं जीतते थे कि उनके जीतने से दूसरों को हार जाने का दुःख होगा और वे स्वयं जानबूझ कर हार जाते थे | घोड़ों की दौड़ में भी जब घोड़ों के मुख से झाग निकलने लगते तो वे घोड़ों के दुःख से भी व्यकुल हो घोड़े को दौड़ाना बंद कर देते थे |
Bhagwan Goutam Buddh Jivani
सिद्धार्थ बचपन से ही एकांत स्थान को पसंद करने वाले व बड़े ही दयावान प्रवृत्ति के थे | इसे लेकर उनके पिता राजा शुद्धोधन परेशान रहते थे | राज्य के विद्वान् पंडितों की सलाह से मात्र 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह गणराज्य की राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया | शादी के पश्चात् राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए तीनों ऋतुओं के लिए 3 आकर्षक महल बनवा दिए ताकि सिद्धार्थ इस सांसारिक मोह माया में रूचि लेने लगे | शादी के कुछ समय पश्चात् उन्हें एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया | किन्तु ये सभी सांसारिक सुख उन्हें अधिक समय तक बांधकर नहीं रख सके और एक दिन सिद्धार्थ ने घर छोड़ने का मन बना लिया | एक दिन किसी को भी बिना बताये उन्होंने घर को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया |
सिद्धार्थ को ज्ञान की प्राप्ति :-
राजा के पुत्र होने से सिद्धार्थ बचपन से ही सभी सुखो से परिपूर्ण थे | किन्तु वृद्ध, रोगी , मृत व्यक्ति व सन्यासी इन चार द्रश्यों से उनका जीवन ही बदल दिया और सभी सुखों को छोड़कर व घर का त्याग कर जगह-जगह घूमने लगे | गृह त्याग के बाद सिद्धार्थ मगध की राजधानी पहुंचे व अलार और उद्रक नामक दो ब्राह्मणों द्वारा ज्ञान प्राप्त करना चाहा किन्तु जिस ज्ञान की तलाश में सिद्धार्थ निकले थे वह उन्हें नहीं मिला | इसके बाद उन्होंने फिर से कुछ ब्राह्मणों के मार्गदर्शन से तपस्या की और ज्ञान अर्जित करना चाहा किन्तु सफल न हो सके | अंत में सिद्धार्थ बिहार राज्य के गया नामक स्थान पर पहुचें और एक वट वृक्ष के नीचे कठोर तपस्या करने लगे और द्रढ़ संकल्प किया कि जब तक उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी वह अपनी तपस्या से नहीं उठेंगे | इस प्रकार लगातार सात दिन और रात कठोर तपस्या के उपरांत उन्हें वैसाख पूर्णिमा के दिन सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई | इतिहास में इसे सम्बोधि घटना के नाम से जाना गया | जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने तपस्या कर सच्चा ज्ञान प्राप्त किया वह वृक्ष बोद्धि वृक्ष के नाम से जाना गया(Bhagwan Goutam Buddh Jivani) |
इस प्रकार हुई सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान की अनुभूति :
सिद्धार्थ द्रढ़ संकल्प के साथ वट वृक्ष के नीचे समाधि अवस्था में थे | पूर्णिमा के दिन एक औरत जिसका नाम सुजाता था जिसको पुत्र की प्राप्ति हुई थी | सुजाता ने वट वृक्ष से पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी थी | इसलिए मनोकामना पूर्ण होने पर वह औरत एक थाली में खीर लेकर पेड़ के पास पहुंची | पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को समाधि में देख सुजाता ने सोचा आज तो साक्षात् वृक्ष देव मनुष्य रूप में बैठे है | ऐसा सोचते हुए सुजाता ने खीर की थाली सिद्धार्थ के समक्ष रख दी और बोली जिस प्रकार मेरी मनोकामना पूरी हुई है आपकी मनोकामना भी पूर्ण हो और इस प्रकार उसी रात सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई | ज्ञान की अनुभूति होने के बाद चार सप्ताह तक बुद्ध उसी वृक्ष के नीचे साधना में लीन रहे |
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ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध सर्वप्रथम सारनाथ गये और अपने पहले के सन्यासी साथियों को सच्चे ज्ञान का बोध कराया | बाद में इन शिष्यों को पंचवर्गीय कहा गया | बाद में उनकी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल ने भी बुद्ध के ज्ञान का अनुसरण किया | इस प्रकार गौतम बुद्ध ने अपने ज्ञान और उपदेशों के सार द्वारा बुद्ध धर्म की स्थापना की | भगवान बुद्ध(Bhagwan Goutam Buddh Jivani) ने अपना सम्पूर्ण जीवन वैशाली, लोरिया, राजगीर और सारनाथ की सीमा में व्यतीत किया और सारनाथ में अंतिम उपदेश देकर देह त्याग किया |