एक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन चक्र में विद्यार्थी जीवन काल सबसे अधिक महत्व रखता है | एक विद्यार्थी उचित शिक्षा ग्रहण करके न केवल स्वयं के जीवन को व अपने परिवार को ही सुखद बनाता है बल्कि अपने देश की उन्नति के मार्ग में भी सहयोग करता है | एक व्यक्ति का विद्यार्थी जीवन/Vidyarthi Jeevan उसके आने वाले भविष्य का आधार है | आज के आधुनिक युग में उचित शिक्षा ग्रहण करके व्यक्ति स्वयं को न केवल मानसिक रूप से सशक्त बनाता है बल्कि समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु आर्थिक रूप से भी मजबूत बनता है |
आज का आधुनिक युग प्रतिस्पर्धा का युग है | यहाँ कला के क्षेत्र में , शिक्षा के क्षेत्र में , खेल के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गयी है कि स्वयं को प्रतिस्पर्धा के इस युग में सफल बनाना किसी कठिन चुनौती से कम नहीं है | लेकिन यह इतना भी कठिन नहीं कि आप सफल होने से पहले ही हार मान ले | एक व्यक्ति के जीवन चक्र में सबसे अधिक प्रतिस्पर्धा का सामना उसके विद्यार्थी जीवन में ही होता है | इसलिए जब आप विद्यार्थी जीवन चक्र में है तो इस समय आपको उचित मार्गदर्शन – अनुशासन – सयंम और कठिन परिश्रम की आवश्यकता है |
विद्यार्थी जीवन में एक विद्यार्थी का मन कैसा होता है ?
एक विद्यार्थी का मष्तिष्क बड़ा चंचल होता है | इस अवस्था में उसे अपनी इच्छाओं की तृप्ति सर्वोपरि है | उसे अच्छे-बुरे की समझ तो होती है किन्तु इस समय इच्छाओं की तृप्ति की भावना इतनी प्रबल होती है जो कि उसे अपने लक्ष्य से दूर करने में पर्याप्त है | विद्यार्थी काल में मष्तिष्क का विकास अधिकांशतः हो जाता है किन्तु अनुभव की कमी होती है | एक विद्यार्थी और परिपक्व व्यक्ति में सबसे बड़ा अंतर ही यही है कि परिपक्व व्यक्ति के पास अनुभव होता है जो उसे दिशाहीन नहीं होने देता और विद्यार्थी के पास अनुभव की कमी है जो उसकी विफलता का कारण बन सकती है |
Vidyarthi Jeevan
विद्यार्थी जीवन कैसा होना चाहिए ?
जैसा कि हम आपको बता चुके है एक विद्यार्थी को जीवन में सफल होने के लिए उचित अनुशासन – सयंम और कठिन परिश्रम की आवश्यकता है | और अनुभव की कमी होने के कारण उसे उचित मार्गदर्शन की नितांत आवश्यकता होती है |
विद्यार्थी जीवन/Vidyarthi Jeevan काल में एक किशोर न केवल उचित शिक्षा ग्रहण करता है बल्कि सामाजिक ज्ञान – व्यवहार – नैतिक मूल्य – खेल – कला और शारीरिक सुद्रढ़ता भी अर्जित करता है | जो विद्यार्थी केवल और केवल शिक्षा के क्षेत्र में अपना नाम कमा लेते है और सामाजिक ज्ञान – व्यवहार -नैतिक मूल्य – खेल इन गतिविधियों से दूर रहते है वे भले ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर ले किन्तु एक परफेक्ट मैन वे कभी नहीं बन सकते | उन्हें समाज के अन्य पहलुओं की समझ नहीं होती जो कि एक व्यक्ति की सफलता के लिए उतनी ही महत्व रखती है जिनती शिक्षा |
- प्रथम एक विद्यार्थी को यह समझना आवश्यक है कि उसे केवल उचित शिक्षा ही अर्जित नहीं करनी है बल्कि उचित शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक ज्ञान – अच्छा व्यवहार – नैतिक मूल्य – खेल – कला और शारीरिक विकास को भी शिक्षा के समान ही महत्व देना है |
- अनुशासन : बिना अनुशासन के विद्यार्थी जीवन को सफल बनाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी हो सकता है | अनुशासन जिसमें आप पहले से निर्धारित नियमों का पालन करते हुए अपने कार्यों को पूर्ण करते है | संसार में हर कोई व्यक्ति अनुशासन का पालन करता है चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से करें या फिर अप्रत्यक्ष रूप से | एक विद्यार्थी को चाहिए वह एक ऐसी दिनचर्या बनाये जिसमें वह स्वयं को नियमों के बाध्य रखते हुए अपनी पढाई – खेल – कला – शारीरिक गतिविधि और परिवार व दोस्तों को उचित समय दे सके |
- यदि आप इस प्रकार की दिनचर्या बनाकर और अनुशासन में रहकर उसका पालन करते है तो आपको सफल होने से कोई नही रोक सकता | ध्यान दे, आप एक विद्यार्थी है और आपका प्रथम दायित्व उचित शिक्षा प्राप्त करना है, इसलिए अपनी दिनचर्या में अधिक समय अपनी पढाई को ही दे |
- विद्यार्थी जीवन, यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें विद्यार्थी को अपनी इच्छाओं की तृप्ति सर्वोपरि है | उसका मन बड़ा चंचल है | इसलिए इसे नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है | इसके लिए आपको सयंम रखने की आवश्यक है | यहाँ सयंम से आशय जल्दबाज़ी, उतावलापन, आवेग अथवा उग्रता का त्याग करना करने से है | जो विद्यार्थी सयंम(धैर्य) रखते है वे न केवल सफल बनते है बल्कि क्रोध को नियंत्रण करने की कला भी ऐसे विद्यार्थी में विकसित होने लगती है |
- कठिन परिश्रम : बिना परिश्रम किये तो छोटे से छोटा कार्य भी पूर्ण नहीं होता फिर विद्यार्थी जीवन तो एक तपस्या है जिसमें कठिन परिश्रम के बिना सफल होने की कल्पना भी नहीं कर सकते | एक पल के लिए यह मान लेते है कि सभी विद्यार्थियों ने इस post को पढ़कर अपने जीवन में अनुशासन – उचित दिनचर्या – संयम और परिश्रम को स्थान दे दिया है | तो आप ऐसे में सफल कैसे होंगे ? प्रतिस्पर्धा के युग में सफलता तो कुछ गिने -चुने विद्यार्थियों को ही मिलती है जो शीर्ष स्थान प्राप्त करते है | ऐसे में कठिन परिश्रम ही प्रतिस्पर्धा में आगे निकलने का मूल मंत्र बनता है | इसलिए कठिन परिश्रम करें , आप अवश्य सफल होंगे |
- उचित मार्गदर्शन : एक विद्यार्थी में सभी गुण हो सकते है किन्तु अनुभव नहीं | एक अनुभवहीन में असफल होने की सम्भावना अधिक रहती है | किन्तु उचित मार्गदर्शन के द्वारा अनुभव की कमी को दूर किया जा सकता है | यह मार्गदर्शन एक विद्यार्थी को अपने माता-पिता और गुरु जी से मिल सकता है | जिस विद्यार्थी के माता-पिता जीवन का अधिक अनुभव रखते है व अपने बच्चे का मार्गदर्शन करते है साथ ही गुरु द्वारा भी यदि विद्यार्थी को अच्छा मार्गदर्शन मिलता है तो विद्यार्थी दिशाहीन नहीं होता और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होता है |
संक्षेप में :
एक विद्यार्थी को जीवन/Vidyarthi Jeevan में सफलता प्राप्त करनी है और आगे चलकर एक परफेक्ट मैन(सर्वगुण रखने वाला व्यक्ति) बनना है | तो उसे
- अनुशासन में रहना है |
- निर्धारित दिनचर्या का पालन करना है |
- संयम रखना है |
- कठिन परिश्रम करना है |
- शिक्षा के साथ -साथ, सामाजिक ज्ञान – व्यवहार – नैतिक मूल्य – खेल – कला और स्वस्थ शरीर का भी विकास करना है |
- माता-पिता और गुरु जी के ध्यान रखने योग्य : उचित मार्गदर्शन |