मनुष्य के द्वारा किया हुआ हर वह कार्य जिससे सृष्टि के रचियता परमपिता परमेश्वर की निकटता बढ़ने का अहसास होता है – धर्म कहलाता है | ठीक इसके विपरीत जिस कार्य के करने से आत्मा और परमात्मा की दूरियाँ बढ़ने लगे – अधर्म(Dharm Adharm Kya Hai) कहलाता है | अब आप कैसे जानेगें कि परमात्मा से निकटता बढ़ रही है या दूरियाँ | एक एहसास जो सदा आपके साथ रहता है जिसे आत्मा की आवाज कहा जाता है, यह आवाज स्वयं आपको ही सुनाई देती है, इसे बाहर का कोई अन्य व्यक्ति नहीं सुन सकता | यही आवाज हर समय आपके कार्य का विश्लेषण कर आपको एहसास दिलाती है कि आपको परम शांति मिल रही है या क्षणिक सुख मात्र |
Dharm Adharm Kya Hai :
आप किनते भी चतुर बने, होशियार बने, अपने आप को ही धोखा दे, परन्तु आत्मा को धोखा नहीं दे सकते | क्योंकि आत्मा स्वयं परमात्मा का अंश है | एक छोटा सा उदाहरण : जैसे आपने अपने कार्य के लिए अपने मित्र से लाखों रूपये ऊधार लिए | समय गुजरा, आपके पास उसे लौटाने के लिए पैसे नहीं, क्योंकि आपको अपने कार्य में घाटा हो गया अब आपके पास 2 विकल्प है : पहला विकल्प – अपने मित्र को पूरी स्थिति से अवगत कराना और धीरे-धीरे जैसे भी बन पड़े उसके पैसे लौटाते रहना | यह धर्म का मार्ग है | दूसरा विकल्प : अपने मित्र से किसी बात पर झगड़ा करने का बहाना ढूंढना, और झगड़ा करने के बाद पैसे न लौटाना | यह मार्ग आपको अधर्म की ओर ले जाता है |
अब जरा ध्यान दीजिए, रात के अन्धेरें में किसी व्यक्ति का धन लूट लिया, इसे स्पष्ट रूप से अधर्म की संज्ञा देंगें | यही कार्य आपने दिन के ऊजाले में आपने अपने मित्र के साथ किया है जो कि झगड़ा करके उसके धन को हड़प गये, दोनों में कोई फर्क नहीं है, आपकी आत्मा सदा इसका अहसास करवाती रहती है | इसी तरह आप हर कार्य से धर्म और अधर्म को जान सकते है |
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अब आप कहेंगें कि फिर यह जो हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई धर्म है यह सब क्या है ? आइये जानते है :-
किसी भी विचारधारा या मान्यताओं को जब हम निरंतर मानने लग जाते है, तो धीरे-धीरे इन मान्यताओं को हम धर्म मानने लग जाते है वास्तव में ये सभी धर्म(Dharm Adharm Kya Hai) अपनी-अपनी मान्यताएं है | धर्म का वास्तविक अर्थ है : धारण करने योग्य | और धारण करने योग्य वही होता है जिससे अपनी आत्मा को पूर्ण आनंद प्राप्त हो | अब आप स्वयं इसकी खोज करेगें कि आपको किस प्रकार की मान्यता में जीना है, जो आपकी आत्मा की परमात्मा से नजदीकियाँ बढ़ाने में सहयोग प्रदान करें | क्योंकि मनुष्य के स्वयं के अनुभव ही सबसे कारगर होते है | – From : आचार्य सत्यनारायण शर्मा
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