हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है | हिन्दू धर्म के अनुसार इस जन्म में किये कर्मों का फल जातक आने वाले जन्म में प्राप्त करता है | वर्तमान समय में आने वाली पीड़ाएं और दुःख भी जातक के पिछले जन्मों के कर्मों का ही फल होता है | मानव योनी को प्राप्त करना भी जातक के पुण्यों का ही फल होता है किन्तु मानव योनी को प्राप्त करने के पश्चात् भी मानव बड़े-बड़े दुखों और कठिनाइयों का सामना करता है इसके पीछे पूर्व जन्म के पाप होते है | यह तो सपष्ट है कि जातक अपने पाप और पुण्य के अनुरूप ही आने वाले जन्म में सुख और दुःख प्राप्त करता है किन्तु अब प्रश्न यह उठता है कि क्या पुण्य/(Sabse Bada Paap or Punya) द्वारा पाप को नष्ट किया जा सकता है ? क्या एक बड़ा पाप करने के पश्चात् 10 बड़े पुण्य करने से आपके द्वारा किया गया एक पाप नष्ट हो जायेगा ? आइये जानते है विस्तार से :
धर्म के विद्वान् बताते है कि एक मानव सम्पूर्ण जीवन जितने पाप करता है वे तभी नष्ट हो सकते है जब वह समान मात्रा में पुण्य कमा ले | किन्तु दूसरी द्रष्टि से देखा जाये तो मनुष्य के पाप कभी नष्ट नहीं होते उनका दण्ड तो उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है चाहे वह कितनी ही मात्रा में पुण्य क्यों न कमा ले | यदि पुण्य करने से पाप नष्ट होते तो हर पापी चोरी, हत्या जैसे पापों को अंजाम देकर महायज्ञ का आयोजन करवाता , ब्राह्मणों को भोजन करवाता |
पाप और पुण्य
तीन तरह से जातक पाप का भागी बनता है : मन में दूसरों के प्रति इर्ष्या भाव रखना , वाणी द्वारा दूसरों को कटुवचन कहना व शारीरिक रूप से दूसरों का अहित करना और पुण्य प्राप्त करने के बहुत से मार्ग है जैसे : – परमपिता परमेश्वर की आराधना करना , दान करना , जरुरतमंद की सहायता करना , दूसरों को पाप करने से रोकना, अपने माता-पिता की सेवा करना, पशु-पक्षियों को भोजन खिलाना आदि |
Sabse Bada Paap or Punya
सबसे बड़ा पाप और पुण्य :-
सामान्य शब्दों में सबसे बड़ा पाप दूसरों का अहित करना है और किसी जरूरतमंद व्यक्ति की बिना किसी स्वार्थ के मदद करना यानि परोपकार करना सबसे बड़ा पुण्य है |
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महर्षि व्यास जी ने जब 18 पुराणों की रचना करने के पश्चात् नारद जी को पुराणों का अध्ययन करके इनका प्रचार प्रसार करने के लिए कहा। नारद जी ने कहा कि लंबे समय तक बैठकर पुराण पढ़ना मेरी क्षमता से बाहर की बात है इसलिए संक्षेप में पुराणों का सार बताइये। इस पर व्यास जी ने कहा “अष्टादशपुराणेशुव्यासस्यवचनद्वयम। परोपकारायपुण्यायपापायपरपीडनम् ॥” अर्थात सभी पुराणों का सार यही है कि दूसरों को कष्ट पहुँचाना सबसे बड़ा पाप(Sabse Bada Paap or Punya) है और जरूरत में पड़े व्यक्ति की सहायता करना ही सबसे बड़ा पुण्य है।