दान करना और देव पूजा, दोनों में कौन सी विधि अधिक पुण्य देने वाली है

By | December 7, 2020

अक्सर आपने देखा होगा या स्वयं ही महसूस किया होगा, कि जो लोग आध्यात्मिक होते है वे देव पूजा, ईश्वर भक्ति के साथ – साथ दान कार्य में भी रुचि प्रकट करते है । क्या आपने कभी यह प्रश्न उठाया है कि दान देने और भक्ति करने दोनों में से कौन से विधि अधिक फलदायी है या पुण्य देने वाली है, यदि हाँ, तो यह पोस्ट आपके प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश अवश्य करेगा ।

ईश्वर द्वारा बनाई गई यह सृष्टि बडी ही विचित्र और चमत्कारी है । जिसमें जीवन का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ कर्म है । यानी एक जीव का जीवन उसके कर्म के अधीन है चाहे वह पिछले जन्म से जुड़े हो या फिर इस जन्म से । आपके कर्म ही है जो आपके भविष्य को निर्धारित करते है ।

जीवन में सुख और दुख के पीछे उस जीव के कर्म जुड़े हो सकते है । यह तो स्पष्ट है कि कर्म के अधीन ही एक जीव जीवन में सुख और दुख प्राप्त करता है फिर यह कैसे पता किया जाए कि कौन से कर्म आपको सुख की तरफ ले जाते है और कौन से दुख की ओर ।

यदि आप ऐसे कर्म करते है जिससे दूसरों का भला हो वह कर्म आपके सुख में वृद्धि करने वाला है । इसके विपरीत आपके कर्म जिससे किसी का अहित होता हो वह कर्म आपको दुख की ओर ले जाते है । दान कार्य ऐसा कर्म है जो दूसरों की भलाई हेतु किया जाता है इसलिए बिना किसी स्वार्थ के किया गया दान सबसे बड़ा पुण्य है । जिसे परोपकार की संज्ञा भी दे सकते है ।

देव पूजा और दान कार्य की तुलना नहीं की जा सकती है दोनों कार्य अलग है और दोनों से मिलने वाले प्रतिफल में बहुत अंतर है ।एक ओर जहां दान कार्य से मिलने वाले पुण्य को किसी अन्य कर्म से तुलना करना अपवाद मात्र होगा , वहीं देव पूजा विषय ही अलग है, देव पूजा से मिलने वाले पुण्य की सत्यता न तो एक नास्तिक व्यक्ति स्वीकार करता है और न ही अन्य धर्मों द्वारा इसे स्वीकार किया जाता है ।

देव पूजा से पुण्य की प्राप्ति होती है, इस तथ्य की पुष्टि नहीं की जा सकती । और न ही किसी वास्तिक उदाहरण द्वारा इसे सिद्ध किया जा सकता है यह विश्वास और श्रद्धा का विषय है ।

निष्कर्ष : देव पूजा से पुण्य मिलता है यह उस व्यक्ति विशेष और विशेष समुदाय की श्रद्धा और विश्वास का विषय है । और दान कार्य से पुण्य मिलता है, इस पर प्रश्न करना ईश्वर द्वारा रचित इस प्रकृति पर ही संदेह करना होगा । सरल शब्दों में दान कार्य करने से मिलने वाला पुण्य सरोपरि है जो कि तुलनात्मक नहीं है ।