अभ्रक एक हर्बो खनिज है जो कि भारत में मुख्यतः बिहार प्रान्त में कोयले की खानों से व राजस्थान के बड़े-बड़े पहाड़ो में मिलता है | आयुर्वेद के अनुसार अभ्रक के चार प्रकार होते है : पनाक , दुर्दूर , नागे व वज्राभ्रक | इन चारों प्रकार के अभ्रक के विषय में इस प्रकार से पता किया जा सकता है | जिस अभ्रक के आग में डालने से पत्ते खिल जाते है उसे पनाक अभ्रक कहते है | जो अभ्रक आग में डालने से मेंढक की तरह टर्र-टर्र की आवाज करता है उसे दुर्दूर अभ्रक कहते है | और जो अभ्रक आग में डालने पर सांप की तरह फुफकार करें उसे नाग अभ्रक कहते है | जो अभ्रक/(Abhrak Bhasma ke Fayde) आग में डालने पर न तो कोई आवाज करें और न ही अपना रूप बदले उसे वज्र अभ्रक कहते है |
अभ्रक भस्म बनाने के लिए मुख्य रूप से वज्राभ्रक का ही प्रयोग किया जाता है | वज्राभ्रक में भी विशेष रूप से भस्म बनाने में इसके काले भाग को ही उपयोग में लाया जाता है | वज्र अभ्रक में लोहे की मात्रा अधिक होने से इसकी भस्म अधिक गुणकारी मानी गयी है | आयुर्वेद में अभ्रक भस्म को बहुत ही प्रभावी औषधियों की श्रेणी में रखा गया है |
Abhrak Bhasma ke Fayde :
अभ्रक भस्म के फायदे :
- अभ्रक भस्म शरीर को सुद्रढ़ बनाती है | इसके प्रयोग से कमजोरी दूर होती है |
- खांसी – जुकाम जैसे रोगों की यह अचूक दवा है |
- जीर्ण ज्वर दूर करने में अभ्रक भस्म का प्रयोग किया जाता है |
- वीर्य बढ़ाने व सम्भोग शक्ति बढ़ाने में अभ्रक भस्म उपयोगी औषधि है |
- कफ विकार दूर करने में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है |
- धातुक्षय विकार दूर करने में |
- पांडू रोग दूर करने में |
- नकसीर विकार में |
- अम्लपित और रक्तपित्त विकार में |
- बवासीर रोग के उपचार में भी यह औषधि गुणकारी है | ( बवासीर रोग में गुणकारी औषधि – अर्शकुठार रस )
- ह्रदय रोग में | ( ह्रदय रोग में गुणकारी औषधि – योगेन्द्र रस )
- स्नायु दौर्बल्यता दूर करने में |
- यह औषधि शरीर के उत्तको की मुरम्मत का कार्य करती है |
- शारीरिक व मानसिक थकावट दूर करने में भी यह औषधि गुणकारी है |
- यकृत विकार दूर करने में |
- मानसिक विकार जैसे : अनिद्रा , चिडचिडापन , तनाव जैसे विकार भी अभ्रक भस्म के प्रयोग से ठीक होते है |
Abhrak Bhasma ke Fayde
विभिन्न रोगों में अभ्रक भस्म से उपचार :
धातु बढ़ाने में अभ्रक का प्रयोग : सोना और चाँदी की भस्म चौथाई रत्ती + अभ्रक भस्म एक रत्ती सभी मिलाकर शहद या मक्खन के साथ दे |
रक्तपित्त के उपचार में अभ्रक का प्रयोग : अभ्रक भस्म को गुड़ या शक्कर और हरड़ का चूर्ण मिलाकर या इलायची का चूर्ण और चीनी मिलाकर दूर्वा स्वरस के साथ दे(Abhrak Bhasma ke Fayde) |
जीर्ण ज्वर में अभ्रक का प्रयोग : जीर्ण ज्वर में अभ्रक भस्म को पीपलामूल का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ देना चाहिए |
बवासीर और पान्डु रोग के लिए : दालचीनी + इलायची + नागकेशर + तेजपाल + सोठ + पीपल + मिर्च + आवंला + हरड़ + बहेड़े का बारीक चूर्ण सभी को चीनी या मिश्री के साथ मिलाकर कर शहद के साथ देना चाहिए |
अम्लपित्त में उपचार में अभ्रक का प्रयोग : अम्लपित के उपचार में अभ्रक भस्म को आवला चूर्ण या आवला रस के साथ देना चाहिए |
स्नायु दौर्बल्यता में अभ्रक का प्रयोग : अभ्रक भस्म 1 रत्ती + मकरध्वज 1/2 रत्ती दोनों को मिलाकर मक्खन या मलाई के साथ रोगी को सेवन कराना चाहिए |
कफ दूर करने में : अभ्रक को कायफल और पीप्पली के चूर्ण में शहद के साथ रोगी को सेवन कराना चाहिए |
वीर्यस्तम्भन के लिए : वीर्य बढ़ाने के लिए अभ्रक को भांग के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए | व धातु क्षीणता में लौंग का चूर्ण व शहद के साथ अभ्रक का प्रयोग करना चाहिए |
ध्यान देने योग्य :
अभ्रक भस्म(Abhrak Bhasma ke Fayde) औषधि से उपचार केवल और केवल चिकित्सक की सलाह से ही करें | स्वयं से किसी भी औषधि का सेवन आपके लिए हानिकारक परिणाम भी दे सकता है | इस औषधि का सेवन सीमित समय के लिए ही किया जाना चाहिए | इस औषधि के सेवन से दिल की धड़कन बढ़ सकती है |