ताम्र भस्म के फायदे – गुण और उपयोग विधि

By | July 19, 2020

ताम्र जिसे सामान्य भाषा में तांबा धातु कहते है | अंग्रेजी भाषा में ताम्र को कॉपर कहते है | ताम्र भस्म तांबा धातु के शोधन द्वारा निर्मित एक आयुर्वेदिक दवा है जिसे विभिन्न रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है | विशेष रूप से ताम्र भस्म का प्रयोग यकृत विकार में – अजीर्ण रोग में – खून की कमी – श्र्वास रोग – शरीर में पित्त का कम बनना – पीलिया और पुराने कफ रोग में किया जाता है |

ताम्र भस्म एक स्वभाव से अत्यंत उग्र – गर्म व पित्त स्रावी है | इसकी तासीर गरम है इसलिए पाचन क्रिया को सुचारू रूप से कार्य करने में यह अत्यंत प्रभावी औषधि है | श्वसन विकार और कफ विकार में यह शीघ्र फायदा करती है | जिन लोगों के शरीर की प्रकृति पहले से गरम स्वभाव की हो उन्हें इस औषधि का सेवन बड़ी ही सावधानी के साथ करना चाहिए |

Tamra Bhasma Ke Fayde

Tamra Bhasma Ke Fayde/ ताम्र भस्म के फायदे : –

ताम्र भस्म की तासीर उग्र होने के कारण इसका प्रयोग विशेष रूप से पेट की मंद अग्नि को ठीक करने और स्वसन विकार को ठीक करने में किया जाता है | इसके अतरिक्त ताम्र भस्म के और भी बहुत से फायदे है :

  • ताम्र भस्म के प्रयोग से उदर रोग में आराम मिलता है | पाचन क्रिया में सुधार होता है |
  • यकृत विकार जैसे : पेट की अग्नि मंद हो जाने से यकृत बढ़ जाना या यकृत की कार्यक्षमता में कमी आ जाना ये सभी विकार ताम्र भस्म के प्रयोग से ठीक होते है |
  • शरीर में पित्त के बढ़ जाने पर इस औषधि का प्रयोग सबसे अधिक प्रभावी सिद्ध होता है | ऐसी अवस्था में आधी रत्ती ताम्र भस्म + 1 रत्ती स्वर्णमाक्षिक भस्म दोनों को मिलाकर शहद के साथ रोगी को देने से फायदा होता है |
  • हैजा होने पर भी ताम्र भस्म का प्रयोग गुणकारी है | हैजा होने पर चौथाई रत्ती ताम्र भस्म + कर्पूर रस 2 गोली को मिलाकर प्याज के रस के साथ मिलाकर मधु के साथ थोड़े-थोड़े अन्तराल पर रोगी को देना चाहिए |
  • शरीर में ख़ून की कमी होने पर भी ताम्र भस्म का प्रयोग फायदा करता है | वैसे तो खून की कमी को दूर करने में लौह भस्म अधिक गुणकारी औषधि है किन्तु यदि पाचन क्रिया में आये विकार के कारण शरीर में खून की कमी होती है तो ऐसे में ताम्र भस्म और लौह भस्म दोनों का मिश्रण रोगी को देना चाहिए |
  • कफ विकार होने पर ताम्र भस्म अत्यंत उपयोगी औषधि है | कफ विकार में ताम्र भस्म को एक माशा कच्चे गूलर फल के चूर्ण के साथ रोगी को देने से लाभ मिलता है |
  • प्रमेह , विषमज्वर , प्लीहोदर , परिणामशूल, अतिसार , हिचकी , आफरा , कुष्ठ , क्रमी रोग व प्लेग रोग के उपचार में भी ताम्र भस्म के उपयोग से फायदा मिलता है |

सेवन विधि  : 

ताम्र भस्म का प्रयोग रोग व रोगी की प्रकृति के अनुसार दिया जाना चाहिए | सामान्य रूप से ताम्र भस्म की 30 मिलीग्राम मात्रा शहद के साथ या रोग की प्रकृति के अनुसार अन्य रस में मिलाकर सेवन की जा सकती है |

ताम्र भस्म अत्यंत शक्तिवर्धक – रुचिकारक और कामोद्दीपक होने से इसका प्रयोग किसी अच्छे चिकित्सक की देख-रेख में करना ही सुरक्षति माना गया है | पोस्ट में दी गयी जानकारी आपके ज्ञान वर्धन में सहायक हो सकती है | रोग के उपचार में अच्छे वैद्य ही आपका उचित मार्गदर्शन कर सकते है |